Thursday, December 16, 2010

"पहली पोस्ट कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन के लिए"

(मजे की बात ये है कि इस बार फिर परीक्षाओं  के बाद आप सब के सामने उपस्थित हूँ.  कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन के लिये  "संभव हो सके तो कुछ इंसान बनाए" शीर्षक से मैंने आज एक पोस्ट लिखी. समय की कुछ कमी है सो यहाँ के लिये कुछ अलग नहीं लिख पा रहा. अतः उसी पोस्ट को यहाँ भी ठेल रहा हूँ ).
 असमंजस में हूँ कि कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन पर पहली पोस्ट के रूप में क्या पोस्ट करूँ? बातें बहुत सी हैं कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ तक करूँ. ब्लॉग पे एक सदस्य के रूप में आगे भी बहुत सारी बातें होती रहेंगी पर आज कानपुर ब्लॉगर एसोसिएसन  के ब्लॉगर बन्धुवों से कहना चाहूँगा की आजकल मुझे इन्सान और इंसानियत  की कमी सी लग रही है, सब के सब मशीन के से बने हुए दिखते हैं. ऐसे में यदि हम कुछ ऐसा करें की कुछ इन्सान बना सकें तो ??????????????????
                                 मुझे पता है कि आज ब्लोगिंग से जितने भी लोग जुड़े हैं उनके अन्दर प्रेम,भाव,संवेदना और इंसानियत नाम की चीजें हैं, तभी वे यहाँ कुछ लिख पाते हैं. ये वे लोग हैं जो घिसी पिटी जिंदगी से ऊपर उठ कुछ करने का माद्दा रखते हैं और कुछ कर सकते हैं. ये भी पता है की ब्लॉगिंग की इस दुनिया में कुछ ऐसे भी छद्म वेशधारी लोग बैठे हैं जो की कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठ कीबोर्ड पे उँगलियाँ चला बहुत बड़ी बड़ी बातें लिख जातें हैं लेकिन वास्तविक जीवन में उनका उससे कोई ताल्लुक नहीं. लेकिन सुकून की बात ये है कि यहाँ ऐसे लोगों की संख्या कम ही है. मैंने अपनि बातों को पंक्तियों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, कुछ ऐसे............

कविता लिखी कहानी लिखी और है ज्ञान बढाया
कभी कुछ   विशिष्ट लिखकर   है नाम    कमाया
आज तेरी    लेखनी को   है   चुनौती   मेरी एक
विजयी कहूँगा तुम्हे   जो कुछ इन्सान   बनाया

क्षमता है तेरी लेखनी में   तेरे ह्रदय  में भाव है
अगर कोरी    कल्पना      से     तुम्हे दुराव है
तो लिखो आज, कल कोई तूफान लाने के लिये
बढ़ो आज कल   को सोचेंगे    कहा    पड़ाव है

चल रही हैं आंधियां     खुद   को     बचाना सीख लें
वक्त जद में न हो   तो    कंधे   झुकाना    सीख    लें
चीख कर कमजोरियां छिपाने वालों से डरते हैं क्यों
शांत रहकर सत्य    से नाता     बनाना     सीख ले

अगर चेहरा ही बताता दिल के अन्दर   की     असलियत
तो फिर   इन    फरेबियों का     ठिकाना     होता    कहाँ
अच्छा है सफल हो जाना इनका कभी कुछ इस कदर की 
इस ज़माने में सही     की   पहचान     भी    होती     रहे 
धन्यवाद"

  

Saturday, October 23, 2010

"छू गया मुझे तब तेरा भोलापन"

पहले  की तरह इस बार भी परीक्षायें खत्म हुई तो ब्लागिंग का शौक पूरा करने ब्लाग जगत में पहुँच गया। हाल मे ही खत्म हुए दशहरा पूजा के अलावा  कालेज मे नवागन्तुकों के स्वागत मे आयोजित उदभव से जुडी यादें भी अभी यथावत बनी हुई हैं, जिन्हे की आप सब तक पहुँचा सकता हूँ । लेकिन आज कुछ ही दिन पहले की अपने यात्रा से जुडी कुछ यादों के साथ-साथ उपरोक्त कार्यक्रमों की तस्वीरें पोस्ट करने का मन पह्ले से ही बनाये बैठा हूँ। और फ़िर तस्वीरे भी तो बोलती है? अतः कार्यक्रमों की जानकारी उन्ही से ले लीजियेगा.
                                         हुआ यूँ कि दशहरे और दीपावली मे घर न जा पाने की स्थिति को पहले  ही भाँपते हुए मैं मौके से मिली दो छुट्टीयों और रविवार महोदय की असीम अनुकम्पा को देखते हुए नवरात्रि के प्रारंभ मे ही घर जाने का मन बना डाला, ट्रेन मे सीट भी आरक्षित कर ली गई। आदत से मजबूर मै निश्चित समय से दो घन्टे पहले  ही यह सोचकर छात्रावास से निकल लिया ताकि निर्धारीत समय से थोडा पहले ही स्टेशन पहुच सकूँ। समय से मिल गई आटो ने लगभग आधे घन्टे मे ही स्टे्शन पहुंचा दिया। अब शुरु हुआ इन्तजार का सिलसिला। जब निर्धारित समय के एक घन्टे बाद तक ट्रेन नही आई तो मैं कुछ दोस्त मित्रों और करीबियों को फ़ोन कर भारतीय रेल के महान परंपरा का गुणगान प्रारंभ किया और उनसे सहानुभूति लेने लगा। किसी की सहानुभूति काम आई और लगभग दो घन्टे की देरी से ट्रेन ने दस्तक दी। कुल मिलाकर लगभग चार घन्टे तक स्टे्शन पर बिताने के बाद ट्रेन के आने की खुशी मेरे चेहरे पे देखी जा सकती थी। आनन-फ़ानन में ट्रेन में सवार हो अपनी निर्धारित सीट पर पसर गया।
                            अब मुद्दे की बात, की यात्रा खास क्यों थी?  यात्रा के दौरान क्या करना है? और क्या नही? से संबंधित ढेर सारे टिप्स मिलते रहे हैं | जैसे क्या खाना है?  क्या नहीं,  किससे बात करनी है? किससे नही, कैसे उतरना?, कैसे चढना? और तो और किसे देखना और किसे नही? सबकुछ ध्यान मे रखते हुए मैने बैग से हेडफ़ोन निकला, एक हिस्सा मोबाइल महाराज  की शरण मे दे दूसरे हिस्से को कान मे लगा देश दुनिया से बेखबर हो जाने का प्रयास करने लगा।
गाने बदल रहे हैं, सामने की बर्थ पर लगभग एक पांच वर्षीय लड़की उम्र मे अपने से दो-तीन साल बडे भाई से नोंक-झोंक कर रही है…….
-पर मुझे क्या करना है? गाना बदल दिया.......
-कुछ अनसुना  सा लग रहा है, शायद किसी नई फ़िल्म का है!
-अच्छा नही लग रहा!!!!!!!!!
-इसे भी बदलते है, हां अब अच्छा है।
-लड़की भाई से उलझना छोड बर्थ के बीच मे बैठ गई है, शायद मेरी तरफ़ देख रही है@
-पर मुझे क्या? मै क्यों देखने जाऊ? पता नही किसको आपत्ति हो जाये ?(वैसे भी लोग आजकल जाने कब? किस बात पे?  कैसे और क्यों? बिना कुछ सोचे नाराज हो जाएँ )
-वो अब भी देख रही है………
-कोई दिक्कत तो नही?  कुछ कह तो नही रही? (गाने पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहा हूँ)
-वो अब भी इधर ही……………………….
-छोडो जाने दो, जिसको जो सोचना हो सोचे, शायद कुछ पूछ्ना या बताना चाह्ती है…..
-एक लम्बी सी मुस्कान, ऐसा लग रहा जाने कितना पुराना परिचय हो...
-गाने सुन  रहे हैं क्या ?
-हाँ , तुम्हे भी सुनना है ?
इधर-उधर देखकर कोई उत्तर नही, मैने फोन से  हेडफ़ोन निकाला और आवाज थोडी तेज कर दी। वो बहुत खुश है, बार-बार चेहरे की तरफ़ देखती है और मुस्कराती है | मै भी उसके कुछ उलजलूल बातों का ढुलमुल उत्तर दीये जा रहा हूँ |
-आपको नींद नही आ रही ?  अब मै सोने जा रही हूँ|
समझ नही पाया की बता रही है ? या फ़िर पूछ रही है !
मैंने भी मौन स्वीकृति में सर हिला मुस्करा कर सो जाने का इशारा किया। जानने की उत्सुकता हुई क्या वास्तव मे सो गई ? जवाब हां था। यात्रा के दौरान सोने की आदत वैसे भी नही है। मैने बैग से डायरी और कलम निकला और जो भाव आते गये पन्नों पर उकेरता चला गया, कुछ ऐसे…
सोचता हू,
तुम्हारे इस मासूम और निश्छल हँसी का राज
लगता है,
उम्र छोटी है तेरी
तू अनजान है दुनिया के नीतियों से
दुनियादारी और ऊंची-नीची बातों से
नही जानती हो छ्ल कपट की दुनिया को।
कल जब तुम हो जाओगी बड़ी 
छीन ली जायेगी तुम्हारी
कुछ इस तरह की निश्छल हँसी 
भर दी जायेंगी ढेर सारी उल्टी-सीधी बातें
तुम्हारे दिमाग मे
निश्चय ही दी जायेंगी कुछ ठोकरें
जो तुम्हे बना देंगी कठोर
रोकेंगी कुछ ऐसा कर पाने से।
हिम्मत भी करोगी कुछ ऐसा करने को
पर रहेंगी चिन्तायें तेरे मष्तिक मे की
कही कुछ ऐसा न हो?
कही कुछ वैसा न हो?
है मुझे पता की समय साथ  छीन जायेगा तेरा ये    भोलापन
पर सौ बार ये मन्न्त करता हू कि खुदा बचाये तेरा  बचपन।
पोस्ट बहुत बडी हो गई। यह यात्रा इसलिये भी यादगार है कि अबतक के जीवन मे पहली बार स्टेशन पे दस मिनट पहले  पहुंचा। यदि थोडी जल्दीबाजी नही की होती तो अगले स्टेशन पर उतरना पड्ता |


























 धन्यवाद"

Tuesday, September 14, 2010

"हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं"

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg75R7nkBJARNa0cE5JGWI80AcxVltPcsUWzQvgEjA3n0kp5L6JVuuY5qEm0WEsLI2f0GOfCxUjAvlD49NO-_Km-gvTkrg8GBnHlfI7Sn8mHWPaj-5DquIh3bthn8Yv5Qwy3qNxIYVsX7V1/s320/hindi_divas.jpg

कोई भी दिवस मनाने का मुझे बस एक लाभ समझ में आता है कि वह दिवस जिससे सम्बंधित होता है, हम उसे भूल नहीं पाते हैं. शायद इसके और भी बहुत सारे लाभ होते हों और उपरोक्त बात मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच को दर्शाती हो लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा की हिन्दी दिवस मनाने की बात मुझे अक्सर खटकते रहती है. मेरे विचार से हिन्दी जो कि मात्र  एक भाषा नहीं बल्कि राष्ट्र भाषा है उसे भूल जाने या फिर उसे याद करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता ? अपनी कुछ इन्ही बातों को दर्शाने के उद्देश्य से मैंने आज कुछ ऐसा लिखा.......
हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं
शायद      कोई    गुन्जाईस    है भूल  जाने की इसे 
इसलिए इसे याद कर हम मानस पटल पर ला रहे हैं
हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं  |
जो हिन्दी सम्पूर्ण भारत के राज-काज और समाज की भाषा होना चाहिए उसके समृद्धि के लिये हम आज हिन्दी दिवस मना रहे हैं. जिस हिन्दी को प्रत्येक भारतीय को एक दुसरे से जोड़ने का माध्यम होना चाहिए, जो हिंदुस्तान की धड़कन होनी चाहिए उसके समृद्धि के लिये सेमिनार और गोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं. अपनी संस्कृति और अपने भाषा के सहारे आज अमेरिका,जापान,चीन इत्यादी देश बुलंदियों को छू रहे हैं और हम हैं कि समूर्ण भारत को एकता के एक सूत्र में पिरोने के लिये हिन्दी को सर्व समाज कि भाषा मानने के बजाय विभिन्न भाषाओँ के साथ इसका सामंजस्य बैठने की कोशिश कर रहे हैं. अपने कुछ एक प्रश्नों पर आप सबके विचार जानना चाहूँगा कि..................
http://www.iccsuriname.org/images/hindi_divas_by_amit_05.jpg१.हिन्दी पैसा बनाने का माध्यम है लेकिन आम जनसंपर्क का माध्यम क्यों नहीं ?
२. जब इसे राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है तो फिर सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये एक अनिवार्य भाषा क्यों नहीं ?
३. राष्ट्र भाषा के नाम पर ओछिं राजनीति क्यों और फिर ऐसा करने वालों के विरुद्ध सख्त कानून क्यों नहीं?

सीधे तौर पर यह बात कहने से परहेज करता हूँ कि हिन्दी का विकास नहीं हुआ या फिर इसका विकास नहीं हो रहा लेकिन जब यथोचित विकास की बात करें तो फिर इसे सहर्ष स्वीकार करना होगा की इसे वो स्थान अबतक नहीं मिल सका है जो इसे मिलना चाहिए. बातें अभी और भी हैं लेकिन आज के लिये बस इतना ही.
http://sarathi.info/wp-content/uploads/2008/09/hindi-day.jpg
(सभी फोटोग्राफ्स गूगल सर्च इंजन से साभार)
धन्यवाद"

Sunday, September 5, 2010

"शुभकामनायें और कुछ और भी"

आज कुछ लिखने की शुरुआत करने से पहले सभी शिक्षकों को इस दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. सबसे पहले तो डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सरीखे लोगों के लिये लिखी अपनी ये पंक्तियाँ लिखता चलूँ कि..............

कल भी कुछ कर गये थे वे , वे अब भी कुछ कर जाते हैं
कल काम से कुछ कर गये थे वे अब नाम से कुछ कर जातेहैं

किसी पोस्ट के माध्यम से तो नहीं लेकिन मुझे ऐसा लगा की अशोक चक्रधर जी का सीधा -साधा पात्र चकरू नई शिक्षा व्यवस्था को देखकर भी जरुर चकरा जाता होगा. इस बार चकरू की परेशानियों को मैंने कुछ ऐसे सामने लाने का प्रयास किया है.................
क्यों न    चकरू            चकराए                चक्रधर                 भाई
नई     शिक्षा          व्यवस्था में है     नई           बीमारी      आई
है नई बीमारी आई         दीखते      सब       पीड़ित      हैं भाई
कही छात्र लिये बैठे सिगार और कही गुरु कर रहे पढाई

चकरू चतुर हैं रहे नहीं, न चिकनी बात कभी है बनाई
दुनियादारी और छल            कपट     इनको    नहीं सुहाई
है इनको नहीं सुहाई    अतः     बात       सीधे है      बताई
दोनों मिलकर दे सकते जग को नव ऊर्जा और तरुणाई

कहें हर्ष सहर्ष सुनें सब गुरुजन, प्रियजन और भाई
गुरु रहेगा गुरु,              शिष्य-शिष्य          रह     जाई
अपनी-अपनी सीमा की पहचान जो इनको आई.
समय और वातावरण से तो ताल्लुक नहीं रखती लेकिन आज की लिखी हुई अपनी कुछ एक और पंक्तियाँ भी आज यहाँ लिखता चलूँ..................
भरे पेट अपना       चाहे          जैसे             भी            हो
पता न चलता रोग कहाँ और कैसी ये लाचारी है,
दो समय की रोटी जुटा हीं पाना लक्ष्य यदि है जीवन का
तो फिर सच है की पशुओं का जीवन      भी हमपे भारी है .

भारत और भारतीय सोच को दर्शाती ये पंक्तियाँ भी कि...........

बसा जो हो अपना घर      तो हर     घर न्यारा     लगता है
प्यार जो हो अपने दिल में तो हर दिल प्यारा लगता है,
कुछ ऐसी हीं खास बात है हम भारत वासी लोगों में
दुश्मन चाहे लाख     सताए     हमको      प्यारा लगता है.

अंततः एक बार फिर से शिक्षक दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. शिक्षक दिवस और हाल में ख़त्म हुए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से सम्बंधित फोटोग्राफ्स के लिये इंतजार कीजिये अगली पोस्ट का क्योंकि अभी पोस्ट कर पाना संभव नहीं हो पा रहा. आज के लिये बस इतना ही............

धन्यवाद"

Sunday, August 15, 2010

शुभकामनायें: पर अतुल्य भारत के सपने का क्या होगा?

http://im.in.com/media/blish/m/photos/2009/Aug/15_august_5_11770_420x315090814011604_515x343.jpg
http://festivalsofindia.in/independenceday/img/independence-day.gifआज सबसे पहले समस्त भारतवासियों को ६4 वे स्वतंत्रता दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. न ज्यादा कुछ कहने को है और न ही ज्यादा कुछ समझाने को.मेरी समझ से  इस इंटरनेट के मायानगरी से जुड़े हुए सभी लोग देश की वस्तुस्थिति से पूर्णतया वाकिफ हैं. लम्बी लाफ्फेबाजियों से बचते हुए आप सब से यही कहना चाहूँगा की अतुल्य भारत का जो सपना हमने देखा है,वो किसी व्यक्ति विशेष  के कार्यों से साकार नहीं किया जा सकता. इसके लिये प्रत्येक भारतीय को अपने स्तर से योगदान करना होगा,कथनी और करनी के अंतर को मिटाना होगा. मेरी चाहत है कि "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ", वाक्य अपने वास्तविक अर्थों को प्राप्त कर सके. अंततः आप सब से अनुरोध है कि अपनी जिम्मेदारियों को इमानदारी पूर्वक निभाते हुए देश के सर्वांगीण  विकास  के लिये काम करते रहें ताकि अपना अतुल्य भारत का सपना साकार हो सके अन्यथा ये सपना बस सपना बनकर ही रह जायेगा.
धन्यवाद"

Monday, July 26, 2010

"लौट आया हूँ फिर से उसी दिनचर्या में"

जब परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो लगा की चलो काम से काम कुछ दिन के लिये इस दिनचार्य से मुक्ति तो मिली लेकिन छुट्टियाँ जाने कैसे बीत गईं और हम लोग फिर से उसी दिनचर्या में लौट भी आए. वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद फिर से छात्रावासीय  दिनचर्या में लौट आने का ये सिलसिला पिछले ग्यारह सालों से चलता आ रहा है. इन पंक्तियों के माध्यम से मैंने कुछ ऐसा ही कहने के प्रयास किया है..........       


        
फिर से        लौट    आया हूँ     उसी       दिनचर्या में
पिछली ग्यारह     सालों   से   रहता  आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी    होते रहे     हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर  कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
             कल का भी लक्ष्य वही होगा
             बातें भी कुछ सोची  सी होंगी  
             पर दूर होकर इस दिनचर्या से
             कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.  
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"    

Wednesday, July 14, 2010

"कश्मीर-एक समस्या?

http://www.lib.utexas.edu/maps/middle_east_and_asia/kashmir_rel_2003.jpg
http://static.guim.co.uk/Guardian/world/gallery/2008/sep/10/1/GD8762394@KASHMIR,-INDIA---SEPT-3107.jpgलगभग पिछले एक महीने से कुछ भी पोस्ट न कर पाने के लिये खुद के आलस्य को जिम्मेदार ठहराऊंगा क्योंकि यदि चाहता तो एक दो पोस्ट तो कर ही सकता था. खैर पिछले कई दिनों से कश्मीर में हो रहे घटनाक्रम के बारे में पढ़कर और सुनकर मुझे काफी अफ़सोस हुआ. कभी  कश्मीर की खुबशुरती के बारे में पढ़कर मैंने यह दृढ निश्चय किया था कि एक बार  कश्मीर जरुर जाऊंगा. लेकिन आज स्थिति ये है कि कश्मीर का नाम सुनकर काले कपडे से ढके किसी आतंकी का चेहरा दिमाग में घूम जाता है.
             कश्मीर आखिर कब तक झेलता रहेगा यह सब? कभी सेना का खौफ,कभी आतंक का साया और कभी सत्ता लोलुप नेताओं की नीतियाँ सबने परेशान किया है इसे.                                               आखीर  किसका साथ दे कश्मीरी जनता? सब का लगभग एक ही मकसद नजर आता है. किसने उसे रातों में नींद और दिन में चैन देने का प्रयास किया है. भारतीय स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कश्मीर के लोग आज तक अपने आप को स्वतन्त्र महसूस नहीं कर पा रहे, इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?
1. क्या वे  भारत की प्रगति के साथ खुद को जोड़ना नहीं चाहते?
२. क्या कश्मीरी युवाओं में हमारी तरह देश प्रेम का जज्बा नहीं?
३. क्या उनके मन में उनके साथ जो कुछ भी होता है उसके लिये रोष नहीं होता?                                                    ४. क्या उनके शरीर में दिल नाम की कोई चीज नहीं जिसमे करुणा और संवेदना हो?
५. क्या वहाँ रहने वाले लोगों का हृदय हमारी तरह नहीं जो कि नित्य प्रति वहाँ होने वाले घटनाओं के बारे में या फिर वहाँ  की स्थिति के बारे में सुनकर सोचकर या फिर पढ़कर रो पड़ता हो?
६. क्या वहा के माँ बाप बच्चों को खुन की होली खेलने की तालीम देते हैं, क्या उनके नजर में मार काट गोले बारूद के अलावा और कुछ भी नहीं?
७. क्या वहाँ के युवाओं के दिमाग में भारत की तस्वीर बदल देने की क्षमता रखने वाली सोच नहीं?
८. क्या उन्हें सही गलत का एहसास नहीं जो वे भटके हुए के से जीवन यापन कर रहे हैं?
१०. क्या वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसके लिये वहाँ की जनता जिम्मेदार है?
http://www.destination360.com/asia/india/images/s/kashmir.jpg                                           सच तो यह है कि उपरोक्त सारी बातें उनके विरुद्ध लिखीं गई हैं. उनके साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिये हमारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं. क्या यह सच नहीं की यदि हमारे नीति निर्माता अबतक चाहे होते तो इस समस्या का निदान बहुत पहले निकल गया होता?
                      ऐसा कहा गया है की कवि और साहित्यकार समाज का आईना होते हैं और ऐसे में साठ के दशक में कश्मीर के मशहूर शायर महजूर यदि कुछ ऐसा लिखते हैं कि "हिंदुस्तान तेरे वास्ते मेरा जिस्म और जान हाजिर है, लेकिन दिल तो पाकिस्तान का है"  तो फिर उस समय के कश्मीरी आवाम के लोगों के मनः स्थिति के बारे में बहुत आसानी से सोचा जा सकता है. ऐसे समय में उन्हें विश्वास में लेने की ज़रूरत थी, लेकिन कुछ ऐसा करने का प्रयास नहीं किया गया. कल जब समाचार पत्र पढ़ रहा था तो पता चला की इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके समाधान के लिये जब सभी पार्टियों की बैठक बुलाई गई तो कुछ पार्टियों ने सीधे तौर पर बैठक में जाने से इंकार कर दिया. क्या वे सीधे तौर पे यह सन्देश देना नहीं चाहते की उनकी चाहत है कि आज जो भी स्थिति है वो यथावत बनी रहे और जो कुछ हो रहा है वो उनके संरक्षण में हो रहा है?
 मामला राजनितिक है ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूँगा लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा की वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसमे वहाँ कि राजनितिक पार्टियों के भागीदार होने की बात को नाकारा  नहीं जा सकता और उन्हें किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाना चाहिए. ऐसे में हमें कठोर से कठोर कदम लेने से भी नहीं हिचकना चाहिए, नहीं तो कश्मीर?????????????

 (पोस्ट में आवश्यक सुधार कर पाने के लिये समय नहीं बचा. आज ही घर जाने के लिये ट्रेन पकडनी है. अतः यदि वर्तनी सम्बन्धी कोई गलती हो तो आप लोग क्षमा करके पचा लीजियेगा)
धन्यवाद"

Monday, June 7, 2010

"विश्व पर्यावरण दिवस: छोड़ दी राजनीति मैने तेरे लिये"

http://upperhunter.local-e.nsw.gov.au/files/4870/File/community.jpghttp://thumbs.dreamstime.com/thumb_398/1242079845KZx1wm.jpgपर्यावरण और पर्यावरण दिवस पर बातें और भाषणबाजियां  तो बहुत हो चुकी,अब समय है कुछ करने का और यह एक ऐसा मुद्दा है जहाँ  हम अपनी गलतियों को दूसरों पर थोपकर आगे नहीं बढ़ सकते. तो फिर इंतजार किस बात की.किस एक धक्के का इंतजार है जो सबकुछ बदलने के लिये आवश्यक है उठिए जागिये और शुरू  हो जाइये आज से.अभी से एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये. न कुछ बताने की ज़रूरत है और न ही समझाने की. बस तीन R, Reduce,Reuse और  Recycle के  concept को ध्यान में रखते हुए, ईमानदारी पूर्वक अपना काम करते हुए बढ़ते जाइये पर्यावरण  प्रदूषण नियंत्रण के मुहिम के इस अन्नंत यात्रा की तरफ.
                                                       कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य  लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ  तक अच्छी  है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो   तब   तो  जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना   के उड़ान   की
प्रदूषित जल के साथ  एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के   साथ  एक   स्वस्थ शरीर  की
प्रदूषित   मृदा     से    उत्तरोत्तर  उत्पादन   की
संभव नहीं है   यह     तबतक    जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.

http://www.2dayblog.com/images/2009/june/saveenvironment.jpgविदेशी तकनीकि और पैसों पर निर्भर न रहने और अपने यहाँ मौजूद संसाधनों से ही स्वदेशी तकनीक विकशित करने के उद्देश्य से मैंने कुछ ऐसा लिखा.................
किसी मजार का दीया  क्या   कर   सकेगा
कोई उधर   का  दीया    कबतक     रहेगा
मेरा दीया जो    साथ  है    मेरे      निरंतर
मेरे तीमीर को बस   वही ही हर     सकेगा.

कुछ तो अपने और कुछ भारतीय  और विदेशी परिदृश्य  को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया  तेरी    हर  चाल  से   वाकिफ     होता     हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता  हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है   मुझको
मेरा भोलापन  शायद तब  छू   न     पाया   तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................

ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत  न्यायिक    दंश     कहूँ
या मानव   कृत     विध्वंश    कहूँ
पर जो भी कहूँ यह  सत्य कहूँ की
देखा था कभी  हरियाली     तुममे
तेरा बाहू पाश   था   कसा    हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
http://iggydonnelly.files.wordpress.com/2009/06/world20environment20day6.jpgपर्यावरण प्रदुषण नियंत्रण के लिये मै भी कुछ प्रोजेक्ट्स पे काम कर रहा हूँ वे जैसे ही पूरा होंगे उनकी जानकारी और उससे जुड़े अपने अनुभव ब्लॉग के माध्यम से आप सब तक पहुंचाउंगा.अब तक आप पोस्ट के शीर्षक और पोस्ट के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे होंगे. चलते चलते ये बताता चलूँ की कल मै हाल ही में रिलीज मूवी राजनीति देखने जाने वाला था. टिकट भी ले लिया गया था. लेकिन मैंने पर्यावरण से सम्बंधित कुछ जानकारी लेना और अपने विचारों को सबके सामने रखने की बात  को श्रेयस्कर समझा मूवी देखने का प्लान कैंसिल कर दीया जो कि उपरोक्त शीर्षक का कारण बना.
धन्यवाद"

Thursday, June 3, 2010

"असफलता"

http://repairstemcell.files.wordpress.com/2009/03/winner-loser.jpgपिछले  दिनों  सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ. एक परिणाम जिसके सकारात्मक आने को लेकर मैं बहुत आशान्वित था, वहाँ असफलता हाथ लगी.थोड़ी देर के लिये मैं परेशान हो गया लेकिन ऐसे समय में अक्सर साथ देने वाली लेखनी याद हो आई और मैंने झटपट लेखनी उठाई और उस समय दिमाग में आने वाले भावों को पन्नों पर उकेर डाला. पहली पंक्ति कुछ ऐसे बन पड़ी..............


मै दुखी हूँ कि कोई मनहूस सी हवा मुझको छूकर गुजरी  है
पर क्या कहूँ  उनके   लिये  जिनसे कि   ये होकर  गुजरी  है.

फिर भाव आते गये और लेखनी दौड़ती रही कुछ ऐसा लिख देने के लिये..................
असफलता जो ले आती है
अरमानों का पतझड़                      
झंकझोर जाती है
मस्तिष्क और दिलो दिमाग को
मुश्किल होता है सृजित कर पाना
नए अरमानों को
सजा पाना कुछ नए सपने
लेकिन फिर भी
उठ खड़े होना
सपनों के कोंपले उगाना
उन्हें पत्तों में विकसित करना
http://www.avforums.com/forums/attachments/past-winners/14286d1116619098-march-2005-competition-winner-theme-sun-sun.jpgपरिचायक है दृढ विश्वास का
एक मजबूत ह्रदय का||||||||||||| 

लेकिन इन सबके बावजूद
मात्र एक शब्द
जो अस्थिर सी कर जाता है                   
कंपकंपा देता है ह्रदय को
रोक देता है सांसों को
चारों तरफ                      
जिसका नाम है
असफलता"

उन असफल अभ्यर्थियों की तरफ से जो अब भी हार नहीं मानना चाहते सफल अभ्यर्थियों को कहना चाहूँगा
कि.....................
गिरते हैं तो  उठ खड़े      होना      सीख     लेंगे               
रखते हैं    दंभ      जीत   को     हम   खींच लेंगे
ऐ  विजय   के नेक       और       बहादुर सिपाही
एक दिन हम भी तुमसे कदम मिलाना सीख लेंगे.
                                     
            
http://franchisessentials.files.wordpress.com/2009/08/winners-and-losers1.jpgप्रारंभिक परीक्षा,मुख्य परीक्षा और फिर साक्षात्कार  तक पहुँच कर असफलता का हाथ लगना एक अभ्यर्थी के लिये काफी दुखद है. मुझे इस बात का मलाल है कि वे अभ्यर्थी जो कि साक्षात्कार तक पहुँचते हैं जिसमें पास होने के बाद हम उन्हें देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारियां देने को होते हैं वो साक्षात्कार में हुई थोड़ी सी चूक मात्र से बाहर हो जाते हैं और फिर उन्हें शुरुआत वहीँ  से करनी होती है जहा से वो पहले चले  होते हैं. यह बात तो सही है कि थोड़ी सी चूक भी चूक ही होती है लेकिन फिर भी.......
धन्यवाद"

Tuesday, June 1, 2010

"हम किस गली जा रहे हैं"

सच कहिये तो ब्लॉग जगत में छुट्टियों का लेखक और पाठक हूँ. कल परीक्षाएँ समाप्त हुईं तो आज कुछ  नया पढ़ने और लिखने के लिये ब्लॉग जगत में उपस्थित हों गया. पिछले दिनों ढ़ेर सारी बातें जो आपतक पहुँचाने का मन बनाया लेकिन मन में ही दबाकर रख लिया. खैर कोई बात नहीं आज उन सबको समेटे यहाँ उपस्थित हों गया हूँ .
संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............
 १. एक राजनेता/राजनेत्री  जो कि अपने आप को जनता का सेवक/सेविका और भी न जाने क्या-क्या बताते/बताती हैं के पास ८७ करोड़ तक की प्रापर्टी कहा से आ जाती? क्या उन्हें उनके जीविकोपार्जन के लिये इतने पैसे मिलते हैं की वे उसमे से इतना बचा पाते हैं???????
या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट  कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?
कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती की वे खुद ही वहाँ  तक पहुचने को तत्पर हों जाएँ????
आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????
यदि नहीं तो फिर ऐसा कर के सरकार क्या हासिल कर लेना चाहती है??????????
जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????

राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!! 

Monday, May 3, 2010

"जाओ जाकर जीतो जग को"

http://www.howtogetback.com/blog_images/small_love_poems.jpg पिछले दिनों चल रही परीक्षाओं ने यह सोचने का ज्यादा मौका ही नहीं दिया की पिछले दो साल से जिन लोगों की हमारे बीच उपस्थिति  हमे बल देती थी,जब हम लोग कॉलेज कैम्पस में नए थे तब जिन लोगों ने हमें पग-पग पर चलना सिखया वो लोग अब कैम्पस में पहले की तरह नहीं मिलने वाले. झार-खंडात्मक संबंधों(झारखण्ड में चलने वाले राजनितिक सम्बन्ध) में विश्वास नहीं रखता और शायद यही कारण है कि आज-कल कुछ अटपटा सा महसूस कर रहा हूँ. ख़ुशी है कि संचार के विभिन्न माध्यम अब भी हमें जोड़े रख सकेंगे लेकिन फिर भी कुछ कमी सी है. खैर छोडिये  ज्यादा भावुक होने की ज़रूरत नहीं. आज सबसे  पहले उन सभी लोगों से कहता चलूँ कि:

ऐ मेरे अन्जान अपरिचीत जीवन पथ के  
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc3DVF14VB29iCieqQHj9G71QhkvL25fd_kwohEi9yCKN-zK-mKJVkKygeLHAxfOggfwzBG-PslmOK4kdVcAaR8ZkVEZXtnHSc6Max_bIN4zBi4vJcINmvxgV3UZFwwhZEyhUua-WsuXOQ/s400/256928733_e09a18341b.jpgपरिचीत साथी
मेरे दुःख के साथी
या फिर
मेरे कहकहों के सहयोगी
मै रहूँगा आजीवन
तुम्हारा आभारी 
नहीं जानता हूँ कल को
परन्तु जानता हूँ कि
कल अलग हो जाने हैं रास्ते हमारे
शायद इतने दूर और इतने अलग की
फिर मिल न सके
लेकिन विश्वास दिलाता हूँ कि
याद रखूँगा तुम्हे
अपने उन बीते हुए लम्हों के साथ
और तुमसे भी उम्मीद रखूँगा
कुछ ऐसा हीं"

इस समय और मौसम से ताल्लुक रखने वाली अपनी ये पंक्तियाँ भी लिखता  चलूँ ..............

"अबतक तुम कहा किये की हमको भूल न पाओगे
                            अब सुन लो तुम मेरी भी याद बहुत  तुम आओगे."

"हाँ   सफ़र  में    दूर    जाने     को कहेंगे
पर   दिलों   से  दूर   कैसे   कर    सकेंगे
दूर है मंजिल    अभी   लम्बा     सफ़र है               
शायद सफर में साथ फिर कभी रह सकेंगे"

 परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो झटपट मूवी देखने का प्लान बना डाला और हाल ही में रिलीज हॉउस फुल देखने पहुँच गया. समय अच्छा कट गया और साथ ही यह सीख मिल गई की लगातार असफलताएँ आदमी को भले ही बंनौती बना दें,लेकिन इमानदारी ,सच और आगे बढ़ने की चाहत किसी न किसी रूप में किसी सैंडी से साक्षात्कार करवा जाएगी जो कि पूरे जीवन की दशा और दिशा बदल देगी. अपने सीनियर्स के लिये कहना चाहूँगा की यदि अबतक उन्हें किसी तरह  की असफलता हाथ लगी हो तो परेशान न हों आने वाला कल सब ठीक कर देगा लेकिन आवश्यकता है: कड़ी मेहनत,दूर दृष्टि और सच्चे लगन की. सबके उज्जवल भविष्य के लिये ढ़ेर सारी शुभकामनाओं के साथ ही यह कहना चाहूँगा की आप जहाँ भी रहें विजेता बनकर रहें.

 

http://michal-yablong.tripod.com/imagelib/sitebuilder/pictures/photos/ocean.jpg
    
चलते-चलते एक चीर परिचीत पंक्ति भी याद दिलाता  चलूँ......
                        "उजाले अपनी    यादों के   हमारे   साथ रहने दें
                                 न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए"

 धन्यवाद"

Sunday, April 11, 2010

"महाप्रयोग: क्या और कैसे?"

http://www.textually.org/ringtonia/archives/images/set3/particle-collider-black-holes.jpg
पिछले दिनों  दैनिक-Stroke के नाम से प्रतिदिन  के खास समाचारों को कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर लगाने कि एक अच्छी शुरुआत की गई. इसके लिये द्वितीय,तृतीय और चतुर्थ वर्ष के छात्रों को लेकर बनाई गई पाँच सदस्यीय टीम का एक सदस्य मै भी हूँ. पहले ही दिन पढ़ने वालों का काफी अच्छा support मिला. इस बीच कुछ लोगों ने सम्पादकीय पन्नों को हिंदी में देने का सुझाव दिया. सामान्यतः अंग्रेजी में मिलने वाली जानकारियों को हिंदी में लिखना, उसे अंग्रेजी में लिखने से थोड़ा ज्यादा मेहनत का काम था और फिर ऐसे में सप्ताह के सातों सम्पादकीय पन्ने  हिंदी में देना संभव नही था.लेकिन जनता की मांग पर सप्ताह के दो सम्पादकीय हिंदी में देने का निर्णय लिया गया. दैनिक-Stroke के लिये  मेरे द्वारा लिखे सम्पादकीय पन्नों में से कुछ एक को यहाँ भी पोस्ट करता रहूँगा. हिंदी का पहला सम्पादकीय पन्ना  मैंने फिर से शुरू हुए महाप्रयोग पर The Hindu और BBC हिंदी से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार किया जिसे आज यहाँ भी पोस्ट कर रहा हूँ..........................


 http://www.rustylime.com/media/image/large_hadron_collider.jpg
सितम्बर २००८ में बंद हो गये Large Hadron Collider ने  एक बार फिर से अपना काम करना शुरू कर दिया है. इतिहास के इस प्रयोग से काफी उम्मीदें  हैं और विज्ञान के क्षेत्र में ढ़ेर सारी नई खोजों की उम्मीद भी  की जा रही हैं.
क्या है ये?: 
अबतक का सबसे बड़ा प्रयोग माने  जाने वाले इस महाप्रयोग के लिये Switzerland  और फ़्रांस की सीमा पर अरबों  डॉलर     लगाकर पिछले २० साल में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्थापित की गई. प्रयोग के लिये बनाई गई मशीन जिसे हम Big Bang Machine के नाम से जानते हैं पर काम करने वाले वैज्ञानिक प्रोटॉन के कणों को एक साथ टकराने की कोशिश करेंगे जो इससे पहले कभी नहीं किया जा सका.वैज्ञानिको का मानना है कि इससे प्रकृति और ब्रम्हाण्ड के कुछ रोचक रहस्यों को खोलने में मदद मिलेगी की आखिर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई.

http://solreka.com/blog/wp-content/hadron_collider_eight_days_left.jpg
 कैसे होगा प्रयोग?:
European Center for Nuclear Research(CE RN) पर लगभग ८० कुशल वैज्ञानिकों के समूह द्वारा किया जाने वाला यह प्रयोग पिछले साल शुरू हुआ था लेकिन तकनीकि खराबी के कारण इसे रोक दिया गया था. विशाल हेड्रन Collider में एटम्स को लगभग सैट ख़राब एलेक्ट्रोन वोल्ट के टकराव के साथ शुरू होगा और ये १८ से २४ महीनों तक जारी रहेगा. इस पूरे महाप्रयोग के जरिये मिलने वाली जानकारी से पृथ्वी की उत्पत्ति की Big Bang theory को समझने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है. इस प्रयोग के लिये प्रोटोनो  को २७ किलोमीटर लम्बी गोलाकार  सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं  में भेजा जायेगा  और वैज्ञानिकों के अनुसार ये एक सेकेण्ड में ग्यारह हजार से भी अधिक परिक्रमा पूरी करेंगे. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकरायेंगे. अनुमान लगाया गया है कि इस दौरान प्रोटोन के टकराने कि लगभग ६० करोड़ से भी ज्यादा घटनाये  होंगी जिन्हें दर्ज किया जायेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौरान १०० मेगाबाईट  से भी ज्यादा आंकड़े एकत्रित किये जा सकेंगे.
वैज्ञानिकों ने यह सूचना भी दी है कि इस महाप्रयोग  से हासिल होने वाले आंकड़ों के अध्ययन में समय लगेगा और लोगों को तुरंत  नतीजे कि उम्मीद नही रखनी चाहिए. महाप्रयोग के प्रवक्ता गुइडो टोनेली ने इस सम्बन्ध में कहा की " मुख्य खोज उसी समय सामने आएगी जब  हम अरबों घटनाओ  को पहचाने और विशेष घटना नजर आए जो पदार्थ का नया आयाम पेश करे". उन्होंने  BBC को बताया कि " यह कल ही नहीं होने वाला  है इसके लिये महीनों और वर्षों के धैर्य पूर्ण काम की ज़रुरत है". धैर्य रखे और उम्मीद करेंकी वैज्ञानिकों का यह प्रयास सफल हो ताकि हमें ब्रम्हांड के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके.
धन्यवाद"

Thursday, February 18, 2010

"लोग आते गये और कारवाँ बनता गया"

वेलेंटाइन डे ढेर सारी हलचल लिये इस बार फिर एक नए रंग में उपस्थित हुआ. हर बार की तरह इस बार भी पक्ष और विपक्ष के ढेर सारी बहसों का साझीदार रहा. इस बार कुछ नया करने का मन बना पक्ष-विपक्ष सबकी एक साथ बैठकर सुनने की योजना बना डाली. योजना तो सही थी लेकिनं इसके लिये बोलने वालों के साथ-साथ सुनने और उचित निष्कर्स निकलने वालों की भी जरुरत थी.
 कुछ नया करने से पहले मैंने अनुमति लेना श्रेयष्कर समझा जो कि मुझे आसानी से मिल गई. मुझे कुछ नया करता देख एक Class mate भी साथ हो लिया. सूचना  लिखी गई और आवश्यक स्थानों पर लगा दिया गया. मन में ढेर सारी बातें चल रही थी कि क्या होगा?,क्या बोलना होगा?,कैसे क्या करना होगा?. इसी उधेड़ बुन में पूर्व नियोजित समय भी आ गया.जब मै सुनिश्चित स्थान पे पहुंचा तो वंहा  किसी को न देख थोड़ा असमंजस में पड़ गया. थोड़ी देर के लिये तो नाराजगी भी हुई कि रूम में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यहाँ आकर क्यों नही बोल रहे. वैसे  मेरी नाराजगी बे वजह थी धीरे-धीरे रेलगाड़ी के डिब्बो की जो कि आम भारतीय सोच है  एक लम्बी कतार खड़ी हो गई.समय से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. विचारों का एक प्रवाह उमड पड़ा.लगभग डेढ़ घंटे चली इस वाद विवाद प्रतियोगिता को मैंने इन वाक्यों में समेटने का प्रयास किया है...........                                                                              
१)  इस दिवस का नामकरण किसी प्रेमी के नाम से नही बल्कि यूनान के किसी संत के नाम पे रखा गया जिन्होंने राजाज्ञा के विरुद्ध किसी प्रेमी युगल कि शादी करा दी.
२)  प्रेम विवाह कि प्रथा हमारे देश में गन्धर्व विवाह के नाम से प्राचीन कल से चली आ रही है.
३)  वर्तमान समय में हमारे समाज में फैली रुढ़िवादियों के पीछे हमारी प्राचीन संस्कृति नही बल्कि सल्तनत और मुगलकालीन व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं.
४)  समाज से किसी बुराई को दूर करने के लिये विचार क्रांति की आवश्यकता है न कि विरोध प्रदर्शन और रैलियों कि
५)  अपनी सीमओं और मान्यतावो को ध्यान में रखकर आप सबकुछ करने को स्वतंत्र हैं.
६)  हमारे निरंतर उन्नति  की तरफ  बढ़ते कदम पतंग की तरह हैं जिसे आगे बढ़ने के लिये अनुशासन रूपी धागे की आवश्यकता है.
७)  समाज को सभ्यता और संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाले लोग इसकी शुरुआत अपने घर से करें.
८)  वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समाज में इमोसन और प्रोफेसन के बीच उचित समन्वय ही हमारा सोसल मैनेजमेंट होगा.
९)  प्यार में पागलपन के लिये कोई स्थान नही है.
१०)  प्यार और मित्रता करने में जल्दबाजी नही करें और यदि करें तो अंत तक निभाएं.



अंततः वाद विवाद की समाप्ति मैंने इन शब्दों के साथ किया कि "करो चाहो जो लेकिन इस बात का ख्याल रख कि हमारी प्रगति के साथ कोई समझौता न हो"

 अंततः यह समस्त घटना क्रम इस पंक्ति को चरितार्थ कर गया कि
"मै अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर 
               लोग आते गये और कारवां बनता गया"


              













(सभी फोटोग्राफ्स मेरे रूम पार्टनर राकेश मीणा  के सौजन्य से) 


                                                   

Friday, February 5, 2010

"तेरी जय हो, विजय हो"

देर से ही सही समस्त भारत वासियों को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं.सफ़र के साथ कदमताल करते हुवे आज हम अपना ६१ वाँ गणतंत्र दिवस भी मना चुके. बीते ६१ वर्ष संघर्षों,परेशानियों के साथ-साथ उपलब्धियों के वर्ष भी रहे और हमारे दिलो दिमाग में ढेर सारी उम्मीदों का सृजन कर गये जिन्हें साकार करने के लिये हम निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं.....

                                             हर बार की तरह इस बार भी गणतंत्र  दिवस को कुछ काम करने के उद्देश्य से लेखनी ने दौड़ लगाई, लेकिन इस बार न जाने क्यों इसने कुछ दुस्साहसी  काम कर डाला. मै तो हर बार इससे अपनी ही कहलवाता रहा लेकिन इस बार इसने मेरी एक न सुनी और पडोसी पाकिस्तान के लिये कुछ ऐसी बात कह डाली.......................
नापाक इरादे रखते हो और    पाक   कहे   तुम   जाते हो
विचलित रहा है पथ खुद का और हमको भ्रमित बनाते हो
कहता यदि मै आतंकी तो उल्टी   ऊँगली    दिखलाते   हो
क्या समझा है तुमने हमको जो नित-नित हमको भरमाते हो
हम सहते हैं,चुप रहते हैं, ना कहते हैं आखिर कबतक ??????????

                    तुम यदि हद को पार किये विकल्प कहो तब क्या होंगे
                    सोचो तब  तेरा क्या होगा जब हम भी अपने पर होंगे
                    पाकी साकी को छोडो तुम है वक्त अभी भी जग जाओ
                     कर्म करो न कुछ ऐसा जो खुद ही खुद पे तुम शर्माओ

इतना ही नही इसने  तो कुछ ऐसा भी कह डाला............................
.
वह दिवस जिसके लिये देनी पड़ी कुर्बानियां
वह दिवस जिसके लिये झेलनी पड़ी विरानियाँ
वह दिवस जिसके लिये किसी ने सपने संजोये रात-दिन
वह दिवस जहा से शुरू हुआ अपना सुदिन
    गुजर गया एक वर्ष आ गया है फिर वह दिवस
                 आज हम एकत्रित हैं जिस दिवस पर

भाषणबाजियों के लिये यही दिवस
कसमे   खाने  को    यही    दिवस
हुई है     छुट्टी     मिली   है मुक्ति
आराम फरमाने को है  यहीं दिवस
                                      पर सोचें थोड़ा उनके लिये भी..........
        सपने     के     लिये     जिनने     अपनों   को छोड़ दिया
        उजड़ा सुहाग सुनी हुई गोदें फिर भी आंसू को रोक लिया
        भ्रस्टाचारी    है   समाज    और   स्वेच्छाचारी   नेता  हैं
       षड्यंत्रकारी है पडोसी   अपना   अक्सर   घाव  जो देता है
घर बैठे हम सोचा करते, T.V पर देख रो लेते हैं
कट जाए चाहे जैसे जीवन थोड़े में खुश हो लेते हैं
                               वक्त है कम दो शब्द कहूँ जो हैं फौलादी
                                      आतंकवाद,अशिक्षा,बढती आबादी
                             रोक सकें तो रोकें नही तो निश्चित बर्बादी

आज चलते-चलते भारत के साथ-साथ समस्त भारत वाशियों के लिये यही कहना चाहूँगा कि "तेरी जय हो,विजय हो"

Wednesday, January 13, 2010

"नूतन वर्ष मंगलमय हो"



आज सबसे  पहले तो "सब नू लोहड़ी दी लख लख बधाइयाँ". सेमेस्टर exam के वजह से नव वर्ष कि बधाइयाँ  नही दे सका हूँ, जिसके लिये आज उपस्थित हूँ.
       "देर    से  दुरुस्त   देने के लिये , सुस्त   को कुछ चुस्त देने के लिये,
      नव ऊर्जा का संचार करने के लिये,मै आ गया नव वर्ष कि बधाई लिये"

                                    "अलविदा २००९,स्वागत २०१०" 
                                                                                     
                     http://nousha.files.wordpress.com/2006/12/new-year.JPG                                              
                                                    "नूतन वर्ष मंगलमय हो"
फोन कॉल,मेल,मैसेज आदि कुछ ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा नव वर्ष कि बधाइयाँ लगभग सबतक पहुँच चुकी हैं लेकिन ब्लॉग के माध्यम से Think more.............
                  "अब तक बधाइयों का सिलसिला थोड़ा  गर्म था
                  कविता अबतक शांत थी और कवि अभी तक मौन था
                  अब जब सबकुछ शांत है बधाइयाँ प्रेषित कर  रहा हूँ
                  न प्रत्यक्ष तो शब्द से ही खुशियों कि झोली भर रहा हूँ.

"आगत का स्वागत करें जोश से, गत को रखकर जेहन में
इस उदिशा संग संकल्प करें और, ऊर्जा भर लें तन मन में
आने वाला कल अपना है,जो कल तक का अपना सपना है
अवरोध  हटाने को सारे, आल इज वेल अब हमको जपना है"

ब्लॉग के माध्यम से शुभकामनायें  देने की ये शुरुआत है और उम्मीद करता  हूँ कि ये कुछ ऐसे ही जारी भी रहेगी लेकिन इस शुभकामना पोस्ट में आने वाले वर्षों के लिये भी शुभकामनाएँ इन शब्दों में.............

                                      "मै पवन हूँ ,हूँ हवा का एक झोंका,
                                       कबतलक मै साथ में चलता रहूँगा,
                                       हर वर्ष की बधाइयाँ इस वर्ष ले लें,
                                      जबतक है जीवन दुआ मै करता रहूँगा.

अपने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के साथ-साथ  सम्पूर्ण विश्व के सुख-शांति और समृद्धि के लिये बहुत सारी शुभकामनाएँ...................................
http://www.mamarocks.com/NewYearAnimals.jpg

समझे वैसे हम हैं जैसे

हाँ तो आज PUT ख़त्म हुआ,और अब सेमेस्टर इग्जाम्स की बारी है. PUT की वजह से मैं  अपनी एक नई कविता यहाँ पोस्ट कर पाने में सक्षम न हो सका सो आज यहाँ उसे लेकर उपस्थित हूँ.
बात कुछ ऐसी है कि इस बीच मेरे एक सीनियर ने मुझसे कुछ ऐसा लिखने को कहा जो कि तूफान ला दे; फिर तो मुझे शुभद्रा कुमारी चौहान कि ये पंक्तियाँ अचानक याद हो आईं...

"भूषण अथवा कवि चन्द्र नही
 बिजली भर दे वो छंद नही
 अब कलम बंधी स्वक्छंद नही
 फिर कौन बताये कौन हंत
 वीरों का कैसा हो बसंत"
                           शुभद्रा कुमारी चौहान

ये बात तो है कि मेरी कलम बंधी नही है,लेकिन ऐसा क्या कुछ लिख दूँ जो बिजली भर दे तूफान ला दे और उसमे भी ऐसे समय में जब मेरे  पास इसके लिये ज्यादा कुछ सोचने का टाइम भी नही था. लेकिन फिर  भी मै उन्हें यह आश्वाशन दिया कि शाम तक कुछ लिखने का प्रयाश करूँगा. ज्यादा सोचने के बजाय मैंने एक विशुद्ध भारतीय सोच जो कि मेरे दिलो दिमाग में बसता है को सब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया जो कि कुछ ऐसे बन पड़ा...

                                 "चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं" 

हम शांति के दूत रहे हैं  शांति  हमको प्यारी है
बुद्ध ने जो सन्देश दिया वो अब भी यहाँ से जारी है
रूप न देखो साज  न देखो  दिल से देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



                     विश्व एक है धर्म एक है सोंच लिये हम बैठे हैं
                     ही जानते दुनिया वालें क्यों हमसे कुछ ऐठें हैं
                     अभी समझ में न आएगा कल को समझेंगे कैसे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



 जिनने भी है हाथ मिलाया हमने उनका साथ निभाया
 दो-दो हाथ किया है उससे जो जो है हमसे टकराया
 दूर से सायद समझ न पाओ पास आ देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                     गद्दारों ने था जब हाथ बढाया हमने था तब हाथ मिलाया
                     सशंकित  थे हम तब भी पर संस्कृति  साथ थी न ठुकराया
                     पर याद रहे उन्हें उनके खातिर हम क्रांति पाले बैठे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


 आह्वान है युवा शक्ति को जग को अपनी क्षमता दिखला दें
 भ्रम फैला है जग में जो भी अपने सामर्थ्य  से उसे मिटा दे
 कर विष्फोट सुना दें सबको हम भारत वाशी कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                            " समझ सके न जो अबतक वो अब समझें
                              सोंचे दिलो दिमाग से और फिर तब समझे
                              कल ग़लतफ़हमी में  रास्ते हो  अलग हमारे
                              उससे पहले तक तो  हमको वो  समझें"
उपरोक्त भाव विभिन्न देशों से भारत के अब तक के रिश्तों को लेकर आये जिन्हें मैंने शब्दों का रूप दिया. वैसे अपने पडोसी देश पाकिस्तान के लिये कुछ अलग ही भाव रखता हूँ और वो डा.कुमार विश्वाश की इन पंक्तियों से शब्दसः मेल करती हैं...

"मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इंकार करता है
 भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
 यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वो लेकिन
 मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है"
                                                       डाँ. कुमार विश्वास

इन पंक्तियों को पहली बार सुन कर ही ऐसा लगा जैसे ये मेरे अपने उदगार हों और इसी लिये मैंने शब्दसः इन्हे लिख डाला. पडोसी देश या फिर यूँ कहें की अपना सगा भाई पाकिस्तान,  आमेरिका और चीन से चाहे जितनी भी सहायता पा ले या फिर वे चाहे जितना भी अपनापन दिखला लें लेकिन इन लोगों की नीति और रीति उसे भली भांति पता है. मुझे दुःख इस बात का है कि सबकुछ जन समझकर भी पडोसी इतना अनजान क्यों बना हुआ है? मै ये मान सकता हूँ कि आज पिकस्तान कि जिन गलत कामों में संलिप्तता जताई जा रही  है उसमे वहाँ  रह रहे कुछ लोगों का हाथ है लेकिन ये बहुमत कि इच्छा है ये बात कदापि स्वीकार करने के लायक नही है. आज के लिये इतना ही.
धन्यवाद"    

"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

पिछले मदर्स डे (10 may) को मैंने अपने माँ को कुछ ऐसे याद किया...............................

                           "माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

                   तुमसे था मेरा प्रथम मिलन 
                   था तुमसे ही पहला साक्षात्कार 
                   पाला पोशा और बड़ा किया
                   फिर दिया मुझे है यह आकर
                   कैसे मै तुमसे मुहं मोडूं
                   और तज दूँ मै तेरा संसार 
                   माँ कौन .....................
मेरे बचपन कि वो बातें 
तुमसे बिछडन कि वो रातें 
जब रख तकिये के नीचे सर
सो जाता था रोते रोते
तब दूरी  और रुलाती थी
जब न थी चिठ्ठी न था तार
माँ कौन..............
                 तुमसे दूर जाने का गम 
                 जल्दी लौट नही पाने का गम
                 लिख कर के पन्नो पर 
                 वो घंटों घंटों का करना कम
                 माँ वो सब मेरा पागलपन था 
                 या उसके पीछे था तेरा प्यार
                 माँ कौन.............
बिना अन्न और पानी के 
मेरे खातिर तू व्रत रखती 
दिल में दबा कष्टों को अपने
मुझसे हँस-हँस बातें करती
गढा गया नही अबतक पैमाना
जो माप सकेगा तेरा प्यार 
माँ कौन...............
                    यदि आह शब्द निकला मुहँ से 
                    आँखे तेरी भर जाती हैं 
                    मेरे कष्टों को कम करने को
                    माँ कितना कष्ट उठाती है
                    फिरा के सर पे तू ऊँगली 
                    कर देती मुझमे ऊर्जा संचार 
                    माँ कौन ...............
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई अपना रूठा
जब छोड़ गया इस जग से कोई
जब लगा कि सर पे कोई तारा टूटा
माँ तेरे आँचल के नीचे 
देखा था मैंने जीवन सार
माँ कौन.............
                  पाने के लिये माँ तेरा प्यार 
                  तज दूंगा मै सारा संसार
                  माँ तू न रही यदि इस जग में 
                  फिर कौन करेगा तुझसा प्यार
                  माँ कौन करेगा तुझसा प्यार.

(कुछ ऐसा ही है माँ का प्यार. आप क्या कहना चाहेंगे??????????????????????????????????????????                  वैस ये कविता एक हिन्दी मासिक पत्रिका के दिसम्बर वाले अंक में आने वाली है, लेकिन ब्लॉग के माध्यम से आपने इसे पहले ही पढ़ लिया)
धन्यवाद: