पिछले मदर्स डे (10 may) को मैंने अपने माँ को कुछ ऐसे याद किया...............................
"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"
तुमसे था मेरा प्रथम मिलन
था तुमसे ही पहला साक्षात्कार
पाला पोशा और बड़ा किया
फिर दिया मुझे है यह आकर
कैसे मै तुमसे मुहं मोडूं
और तज दूँ मै तेरा संसार
माँ कौन .....................
मेरे बचपन कि वो बातें
तुमसे बिछडन कि वो रातें
जब रख तकिये के नीचे सर
सो जाता था रोते रोते
तब दूरी और रुलाती थी
जब न थी चिठ्ठी न था तार
माँ कौन..............
तुमसे दूर जाने का गम
जल्दी लौट नही पाने का गम
लिख कर के पन्नो पर
वो घंटों घंटों का करना कम
माँ वो सब मेरा पागलपन था
या उसके पीछे था तेरा प्यार
माँ कौन.............
बिना अन्न और पानी के
मेरे खातिर तू व्रत रखती
दिल में दबा कष्टों को अपने
मुझसे हँस-हँस बातें करती
गढा गया नही अबतक पैमाना
जो माप सकेगा तेरा प्यार
माँ कौन...............
यदि आह शब्द निकला मुहँ से
आँखे तेरी भर जाती हैं
मेरे कष्टों को कम करने को
माँ कितना कष्ट उठाती है
फिरा के सर पे तू ऊँगली
कर देती मुझमे ऊर्जा संचार
माँ कौन ...............
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई अपना रूठा
जब छोड़ गया इस जग से कोई
जब लगा कि सर पे कोई तारा टूटा
माँ तेरे आँचल के नीचे
देखा था मैंने जीवन सार
माँ कौन.............
पाने के लिये माँ तेरा प्यार
तज दूंगा मै सारा संसार
माँ तू न रही यदि इस जग में
फिर कौन करेगा तुझसा प्यार
माँ कौन करेगा तुझसा प्यार.
(कुछ ऐसा ही है माँ का प्यार. आप क्या कहना चाहेंगे?????????????????????????????????????????? वैस ये कविता एक हिन्दी मासिक पत्रिका के दिसम्बर वाले अंक में आने वाली है, लेकिन ब्लॉग के माध्यम से आपने इसे पहले ही पढ़ लिया)
धन्यवाद:
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