Wednesday, January 13, 2010

"नूतन वर्ष मंगलमय हो"



आज सबसे  पहले तो "सब नू लोहड़ी दी लख लख बधाइयाँ". सेमेस्टर exam के वजह से नव वर्ष कि बधाइयाँ  नही दे सका हूँ, जिसके लिये आज उपस्थित हूँ.
       "देर    से  दुरुस्त   देने के लिये , सुस्त   को कुछ चुस्त देने के लिये,
      नव ऊर्जा का संचार करने के लिये,मै आ गया नव वर्ष कि बधाई लिये"

                                    "अलविदा २००९,स्वागत २०१०" 
                                                                                     
                     http://nousha.files.wordpress.com/2006/12/new-year.JPG                                              
                                                    "नूतन वर्ष मंगलमय हो"
फोन कॉल,मेल,मैसेज आदि कुछ ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा नव वर्ष कि बधाइयाँ लगभग सबतक पहुँच चुकी हैं लेकिन ब्लॉग के माध्यम से Think more.............
                  "अब तक बधाइयों का सिलसिला थोड़ा  गर्म था
                  कविता अबतक शांत थी और कवि अभी तक मौन था
                  अब जब सबकुछ शांत है बधाइयाँ प्रेषित कर  रहा हूँ
                  न प्रत्यक्ष तो शब्द से ही खुशियों कि झोली भर रहा हूँ.

"आगत का स्वागत करें जोश से, गत को रखकर जेहन में
इस उदिशा संग संकल्प करें और, ऊर्जा भर लें तन मन में
आने वाला कल अपना है,जो कल तक का अपना सपना है
अवरोध  हटाने को सारे, आल इज वेल अब हमको जपना है"

ब्लॉग के माध्यम से शुभकामनायें  देने की ये शुरुआत है और उम्मीद करता  हूँ कि ये कुछ ऐसे ही जारी भी रहेगी लेकिन इस शुभकामना पोस्ट में आने वाले वर्षों के लिये भी शुभकामनाएँ इन शब्दों में.............

                                      "मै पवन हूँ ,हूँ हवा का एक झोंका,
                                       कबतलक मै साथ में चलता रहूँगा,
                                       हर वर्ष की बधाइयाँ इस वर्ष ले लें,
                                      जबतक है जीवन दुआ मै करता रहूँगा.

अपने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के साथ-साथ  सम्पूर्ण विश्व के सुख-शांति और समृद्धि के लिये बहुत सारी शुभकामनाएँ...................................
http://www.mamarocks.com/NewYearAnimals.jpg

समझे वैसे हम हैं जैसे

हाँ तो आज PUT ख़त्म हुआ,और अब सेमेस्टर इग्जाम्स की बारी है. PUT की वजह से मैं  अपनी एक नई कविता यहाँ पोस्ट कर पाने में सक्षम न हो सका सो आज यहाँ उसे लेकर उपस्थित हूँ.
बात कुछ ऐसी है कि इस बीच मेरे एक सीनियर ने मुझसे कुछ ऐसा लिखने को कहा जो कि तूफान ला दे; फिर तो मुझे शुभद्रा कुमारी चौहान कि ये पंक्तियाँ अचानक याद हो आईं...

"भूषण अथवा कवि चन्द्र नही
 बिजली भर दे वो छंद नही
 अब कलम बंधी स्वक्छंद नही
 फिर कौन बताये कौन हंत
 वीरों का कैसा हो बसंत"
                           शुभद्रा कुमारी चौहान

ये बात तो है कि मेरी कलम बंधी नही है,लेकिन ऐसा क्या कुछ लिख दूँ जो बिजली भर दे तूफान ला दे और उसमे भी ऐसे समय में जब मेरे  पास इसके लिये ज्यादा कुछ सोचने का टाइम भी नही था. लेकिन फिर  भी मै उन्हें यह आश्वाशन दिया कि शाम तक कुछ लिखने का प्रयाश करूँगा. ज्यादा सोचने के बजाय मैंने एक विशुद्ध भारतीय सोच जो कि मेरे दिलो दिमाग में बसता है को सब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया जो कि कुछ ऐसे बन पड़ा...

                                 "चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं" 

हम शांति के दूत रहे हैं  शांति  हमको प्यारी है
बुद्ध ने जो सन्देश दिया वो अब भी यहाँ से जारी है
रूप न देखो साज  न देखो  दिल से देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



                     विश्व एक है धर्म एक है सोंच लिये हम बैठे हैं
                     ही जानते दुनिया वालें क्यों हमसे कुछ ऐठें हैं
                     अभी समझ में न आएगा कल को समझेंगे कैसे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



 जिनने भी है हाथ मिलाया हमने उनका साथ निभाया
 दो-दो हाथ किया है उससे जो जो है हमसे टकराया
 दूर से सायद समझ न पाओ पास आ देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                     गद्दारों ने था जब हाथ बढाया हमने था तब हाथ मिलाया
                     सशंकित  थे हम तब भी पर संस्कृति  साथ थी न ठुकराया
                     पर याद रहे उन्हें उनके खातिर हम क्रांति पाले बैठे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


 आह्वान है युवा शक्ति को जग को अपनी क्षमता दिखला दें
 भ्रम फैला है जग में जो भी अपने सामर्थ्य  से उसे मिटा दे
 कर विष्फोट सुना दें सबको हम भारत वाशी कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                            " समझ सके न जो अबतक वो अब समझें
                              सोंचे दिलो दिमाग से और फिर तब समझे
                              कल ग़लतफ़हमी में  रास्ते हो  अलग हमारे
                              उससे पहले तक तो  हमको वो  समझें"
उपरोक्त भाव विभिन्न देशों से भारत के अब तक के रिश्तों को लेकर आये जिन्हें मैंने शब्दों का रूप दिया. वैसे अपने पडोसी देश पाकिस्तान के लिये कुछ अलग ही भाव रखता हूँ और वो डा.कुमार विश्वाश की इन पंक्तियों से शब्दसः मेल करती हैं...

"मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इंकार करता है
 भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
 यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वो लेकिन
 मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है"
                                                       डाँ. कुमार विश्वास

इन पंक्तियों को पहली बार सुन कर ही ऐसा लगा जैसे ये मेरे अपने उदगार हों और इसी लिये मैंने शब्दसः इन्हे लिख डाला. पडोसी देश या फिर यूँ कहें की अपना सगा भाई पाकिस्तान,  आमेरिका और चीन से चाहे जितनी भी सहायता पा ले या फिर वे चाहे जितना भी अपनापन दिखला लें लेकिन इन लोगों की नीति और रीति उसे भली भांति पता है. मुझे दुःख इस बात का है कि सबकुछ जन समझकर भी पडोसी इतना अनजान क्यों बना हुआ है? मै ये मान सकता हूँ कि आज पिकस्तान कि जिन गलत कामों में संलिप्तता जताई जा रही  है उसमे वहाँ  रह रहे कुछ लोगों का हाथ है लेकिन ये बहुमत कि इच्छा है ये बात कदापि स्वीकार करने के लायक नही है. आज के लिये इतना ही.
धन्यवाद"    

"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

पिछले मदर्स डे (10 may) को मैंने अपने माँ को कुछ ऐसे याद किया...............................

                           "माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

                   तुमसे था मेरा प्रथम मिलन 
                   था तुमसे ही पहला साक्षात्कार 
                   पाला पोशा और बड़ा किया
                   फिर दिया मुझे है यह आकर
                   कैसे मै तुमसे मुहं मोडूं
                   और तज दूँ मै तेरा संसार 
                   माँ कौन .....................
मेरे बचपन कि वो बातें 
तुमसे बिछडन कि वो रातें 
जब रख तकिये के नीचे सर
सो जाता था रोते रोते
तब दूरी  और रुलाती थी
जब न थी चिठ्ठी न था तार
माँ कौन..............
                 तुमसे दूर जाने का गम 
                 जल्दी लौट नही पाने का गम
                 लिख कर के पन्नो पर 
                 वो घंटों घंटों का करना कम
                 माँ वो सब मेरा पागलपन था 
                 या उसके पीछे था तेरा प्यार
                 माँ कौन.............
बिना अन्न और पानी के 
मेरे खातिर तू व्रत रखती 
दिल में दबा कष्टों को अपने
मुझसे हँस-हँस बातें करती
गढा गया नही अबतक पैमाना
जो माप सकेगा तेरा प्यार 
माँ कौन...............
                    यदि आह शब्द निकला मुहँ से 
                    आँखे तेरी भर जाती हैं 
                    मेरे कष्टों को कम करने को
                    माँ कितना कष्ट उठाती है
                    फिरा के सर पे तू ऊँगली 
                    कर देती मुझमे ऊर्जा संचार 
                    माँ कौन ...............
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई अपना रूठा
जब छोड़ गया इस जग से कोई
जब लगा कि सर पे कोई तारा टूटा
माँ तेरे आँचल के नीचे 
देखा था मैंने जीवन सार
माँ कौन.............
                  पाने के लिये माँ तेरा प्यार 
                  तज दूंगा मै सारा संसार
                  माँ तू न रही यदि इस जग में 
                  फिर कौन करेगा तुझसा प्यार
                  माँ कौन करेगा तुझसा प्यार.

(कुछ ऐसा ही है माँ का प्यार. आप क्या कहना चाहेंगे??????????????????????????????????????????                  वैस ये कविता एक हिन्दी मासिक पत्रिका के दिसम्बर वाले अंक में आने वाली है, लेकिन ब्लॉग के माध्यम से आपने इसे पहले ही पढ़ लिया)
धन्यवाद: