Saturday, August 27, 2011

"बात जो पचती नहीं"

 
ऐसी ढेर सारी बातें होती हैं जो नहीं पचती. लेकिन थोडा सामंजस्य के बाद या फिर यूँ कहें की थोडा दायें-बायें कर बातों को इस लायक बना लिया जाता है ताकि वे आसानी से पचाई जा सकें. पर इस बीच जो कुछ हुआ बड़े प्रयास के बाद भी पचने का नाम नहीं ले रहा. खैर स्थिति भी ऐसी आ गई है की अब ये सबकुछ सामंजस्य बिठाने के लायक समझ नहीं आता.
पिछले दिनों घटनाक्रम पर लगातार नजर बनाये हुए था. हो भी क्यों न राष्ट्र हित की बात जो थी. पिछले दिनों BBC पे पंकज प्रियदर्शी जी का ब्लॉग पढ़ा, The Hindu में अरुंधती रॉय का सम्पादकीय आलेख पढ़ा, साथ ही अन्य सभी समाचारपत्रों के सम्पादकीय पन्नो पर नजर दौड़ता रहा. सब कुछ देख समझ कर लगा की इस भ्रष्टाचार ने तो मीडिया की नियत भी ख़राब कर रखी है. कल तक अन्ना के आन्दोलन के साथ खड़ी मीडिया का रुख अचानक बदलने क्यों लगा है? यह बात सच है कि अच्छे और बुरे पहलु प्रत्येक बात के साथ जुड़े होते हैं लेकिन लेकिन अच्छा तो ये होता की राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे ही प्रकाश में आयें, फिजूल की बातों के लिए तो और भी समय है. आज जब पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाये हुए है, कुछ कर गुजरने के सपने बुन रहा है आपका (मीडिया) यह व्यवहार आपकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है.
मैंने कुछ ऐसा लिखने का मन अनायास ही नहीं बनाया. पिछ्ले दिनों मैंने जो कुछ पढ़ा और देखा वो इसके लिए पर्याप्त था कि मै कुछ ऐसा लिखूं. तो फिर बात करते हैं उन बातों की जिन्हें पचा नहीं पा रहा हूँ.
-BBC में पंकज प्रियदर्शी जी लिखते हैं कि अन्ना के आन्दोलन के कुछ फायदे तो हैं पर इसका नुक्सान माध्यम वर्ग को उठाना पड़ेगा, बदलाव केवल विचार परिवर्तन के साथ हो सकता है न कि इस तरह के आन्दोलन से. यही नहीं ये तो माध्यम वर्ग को दिग्भ्रमित भी बताते है .
--मेरा कहना ये है कि आज सभी जाति धर्म संप्रदाय के लोग एक साथ आवाज उठाने को तैयार हैं क्या ये विचार परिवर्तन नहीं है. अभी कुछ दिनों पहले एक रैली का हिस्सा रहा. जाहिर सी बात है कि रैली के कारण ट्रैफिक रही  लेकिन किसी के चेहरे पर परेशानी जैसी कोई बात नहीं रही,उल्टे लोग गाड़ी रोकते हमारे स्वर से स्वर मिलाते और आगे बढ़ जाते कुछ और लोगों का उत्साह वर्धन करने के लिए. ट्रैफिक पुलिस मौन हो कर सब कुछ देख रही थी और और लोग व्यवस्था खुद बना रहे थे.मै बस ये कहना चाहता हूँ कि जिस विचार परिवर्तन कि आप बात कर रहे हैं उसके लिए आपके क्या सुझाव हैं? या फिर आप क्या कर सकते हैं?
--अरुंधती रॉय का मानना है कि यह यह आन्दोलन कुछ टॉप लेवल के लोगों द्वारा चलाया जा रहा है, इससे आम जनता को कोई फायदा नहीं हो सकता. वे अन्ना की मांगों को अलोकतांत्रिक भी बताती हैं.
-मै ये जानना चाहता हूँ कि Ground Level से जाकर क्या आप इस आन्दोलन के इतने सफल होने कि बात सोच सकती हैं? वैसे आपका भी तो एक लेवल है आप अपने विचारों से ऐसे कितने लोगों को प्रभावित कर सकती हैं? आप तो खुद भी कुछ सकारात्मक करने के बजाय अपने विवादस्पद बयानों के लिए सुर्ख़ियों में रही हैं. भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है तो इसको खत्म करने की शुरुआत वही से करनी होगी जहाँ से ये पनप रहा है. पैसा देकर मनमाफिक जगह पर काम करने का अवसर पाने वाला अधिकारी वहाँ  जाकर पैसे बनाने कि क्यों न सोचेगा? आप संसद के गरिमा की बात करती हैं जबकि आपको ये भी पाता है की ये संसद और संसद हमने बनाये हैं और हमारी इच्छायें सर्वोपरि हैं.
--ऐसा लगा जैसे संपादकों को ऐसा निर्देश दिया गया हो की  कुछ ऐसा ही प्रकाशित करें जिससे इस आन्दोलन को कमजोर बनाया जा सके. या फिर कुछ अलग दिखने और करने के चक्कर में ये लोग राष्ट्र हित को हीं भूलने लगे.
 -इतना ही नहीं अवसरवादी राजनितिक पार्टियाँ भी बेनकाब हुईं. ये लोग कुछ भी बोल पाने कि स्थिति में नहीं दिखे. मुझे आश्चर्य था कि किसी ने इस आन्दोलन को उचाई तक पहुँचाने वाले लोगों के जाति,धर्म, या क्षेत्र के बारे में कोई टिपण्णी क्यों नहीं की? सो पिछ्ले दिनों समाचार पत्रों में ये भी पढ़ने को मिल गया.
-All india confederation of india के लोगों को अन्ना के किस बात से आपत्ति है ये बात तो सामने नहीं आई लेकिन विरोध  प्रदर्शन  की  फोटोग्राफ्स  देखने  को जरुर  मिलीं . ऐसा  कर के ये  लोग  भारतीय जनमानस  को क्या संदेश  देना  चाहते  हैं  ये  बात तो  समझ  से परे  है  लेकिन   लेकिन  कुछ  छुद्र  राजनीतिज्ञ  उनके सुर  में  सुर  मिलाने  से भी नहीं चुके.
- अन्ना को चुनाव जीतकर संसद में आने और फिर जनलोकपाल बिल को पास कराने की सलाह देने वाले सीधे-सीधे ये क्यों नहीं कहते वे लोग वहाँ रहते हुए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि खुद भी भ्रष्ट हैं. सीधी बात करें तो जनता  भी समझे की कैसे-कैसे लोग वहाँ पहुँच जाते हैं.
-एक बूढ़े इमानदार आदमी को पिछ्ले ग्यारह दिनों से भूखे रखकर सरकार खुद को बचाने का प्रयास करती रही. ये लोग कुछ ऐसा क्यों नहीं करते की हमसे पर्याप्त  दूर रहने वाले आमेरिका को ये न बताना पड़े की हमारा पडोसी हमारी सीमाओं पर अत्याधुनिक मिसाइलें खड़ी कर रहा है.
-भगवान् बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी का विकाश चीन क्यों करा है? अपने पड़ोस के ही इस धार्मिक महत्व के स्थान के विकास की बात हमने अबतक क्यों नहीं सोची? चीन हमारे आस पास लगातार अपनी शक्तियाँ बढ़ा रहा है. उसकी मनसा भी जग जाहिर है. लेकिन हमारी सरकार अपने घर के कलह से बाहर निकले तब तो!
-पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार जिस दिन भारतीय नेतावों के साथ वार्ता कर रही थी और भारतीय मिडिया उनके खुबशुरती के कसीदे गढ़ रहा था पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा पर लगे तीन जवानो का सर काट कर अपने नापाक इरादों का परिचय दे दिया.
-जो कुछ आज हुआ आज से दस दिन पहले भी किया जा सकता था या फिर तभी जब अन्ना ने पहली बार जन लोकपाल को सामने रखा था. लेकिन ऐसा करने से तौहीन जो हो जाती? इन्हें तो अन्ना की शक्ति देखनी थी? तो अब सबकुछ दिख भी चुका.
-रामदेव के आन्दोलन की तरह अन्ना के आन्दोलन को भी दबाने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ा लेकिन ये तो भारतीय जनमानस था जो इस बार सही समय पर जग गया. सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले के खिलाफ आतंकियों का सा व्यवहार किया जा रहा है. काश ऐसा उन्ही लोगों (आतंकियों) के साथ होता तो ये सब कुछ देखने को नहीं मिलता. रामदेव और उनके सहयोगियों के खिलाफ तथ्य जुटाने में जितनी तत्परता दिखाई गई उतनी यदि आतंकवाद के खिलाफ दिखाते तो अबतक जेल में बंद कुछ रावणों से मुक्ति मिल गई होती.
-जन्लोक्पाल बिल का क्या हस्र होगा ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन इसपर विचार करने का काम जिस स्थाई समीति को सौपा गया है उसके कुछ सदयों के मानसिकता और कार्यप्रणाली पर मुझे संदेह है. इसमें ऐसे कई चेहरे हैं जो कल संसद में अपने वोट बैंक बनाने के लिए अन्ना के समर्थन में तो दिखे लेकिन वास्तविक मुद्दों पर उदासीन ही रहे. संसद सदस्य बन जाने के बाद मनमानी को अपना अधिकार समझने वाले लोग सावधान रहें अगले चुनाव में जनता आपको वहाँ पहुँचाने जैसी कोई गलती नहीं करेगी.
-भारतीय जनमानस से एक अनुरोध करना चहुँगा की जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सबने एक साथ आवाज उठाई और अपनी बात मनवा लिया वैसे ही जाती,धर्म,संप्रदाय और क्षेत्रीयता के नाम पर राजनीति करने वालों को अगले चुनाव में करारा जवाब देकर एक और मिसाल कायम करे.
--जनमानस के आवाज को दबाने वालों को एक खुली चेतावनी है कि अबतक हम Reformation की बात करते रहे हैं, आप अपनी हदें पार न करें अन्यथा हम Recreation की सोचेंगे.

इस अलख को कुछ यूँ ही जलाये रखें
 बातें तो अभी और हैं होती हीं रहेगी |  
जय हिंद! जय भारत!







Tuesday, August 16, 2011

अन्ना हीं क्यों?

मुझे लगा था कि रामदेव की गिरफ़्तारी से सबक लेते हुए सरकार अन्ना हजारे के साथ कुछ ऐसा करने से बचेगी. लेकिन बेशर्मी की हद तो देखिये की आज अन्ना को भी गिरफ्तार कर लिया गया! इतना ही नहीं अन्ना का साथ दे रहे दो पूर्व प्रशासनिक अधिकारीयों और १४०० लोगों को भी इस लोकतंत्र विरोधी सरकार ने नहीं बक्सा. देश की शांति व्यवस्था को लेकर यदि ये लोग इतने ही सजग हैं  तो फिर पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ वो नहीं होना चाहिए था. कोई आतंकी या देश द्रोही खुली चुनौती देकर नहीं आता है,ऐसे में अन्ना का गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाना सर्वथा अनुचित है. और अगर यह उचित है तो फिर सरकार को कुछ और लोगों की भी सुध लेनी चाहिए.
 समयाभाव की वजह से आज ज्यादा कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ. फ़िलहाल एक IITian नितिन गुप्ता के एक पोस्ट का कुछ भाग यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ, ताकि इस सरकार के केंद्र बिंदु में रहने वाले लोगों के सच्चाइयों से भी आप लोग अवगत हों....

Rahul Gandhi: "I feel ashamed to call myself an INDIAN after seeing what has happened here in UP".
PLEASE DON'T BE ASHAMED OF U.P. YET
Please don't be ashamed of Uttar Pradesh yet. Congress ruled the State for the Majority of the duration Pre Independence to Post Independence.. from 1939 to 1989 ( barring the Periods of Emergency.. Thanks to your Grand Mom Indira G. and a couple of transitional Governments)
8 out of the total 14 Prime Ministers of India have been from UP, 6 out of those 8 have been from Congress...
I think your party had more than half a century and half a Dozen PM's to build a State...
The Reason Mulayam Singh, subsequently came to Power is because your party wasn't exactly Gandhian in their dealings in the State.. So May be If you look at in totality the present chaos in UP is the outcome of the glorious leadership displayed by Congress in UP for about 50 years!
So Please don't feel ashamed as yet Dear Rahul.. For Mayawati is only using the Land Acquisition Bill which your party had itself used to LOOT the Farmers many times in the Past!
WHY DIDN'T YOUR PARTY CHANGE THE BILL WHEN IT WAS IN POWER FOR SO LONG?
Not that I Endorse what Mayawati is doing.. What Mayawati is doing is Unacceptable..
But the past actions of your party and your recent comments, puts a question mark on your INTENT and CONSISTENCY.
YOU REALLY WANT TO FEEL ASHAMED
But don't be disappointed, I would give you ample reasons to feel ashamed...
You really want to feel Ashamed..?
First Ask Pranav Mukherjee, Why isn't he giving the details of the account holders in the Swiss Banks.
Ask your Mother, Who is impeding the Investigation against Hasan Ali?
Ask her, Who got 60% Kickbacks in the 2G Scam ?
Kalamdi is accused of a Few hundred Crores, Who Pocketed the Rest in the Common Wealth Games?
Ask Praful Patel what he did to the Indian Airlines? Why did Air India let go of the Profitable Routes ?
Why should the Tax Payer pay for the Air India losses, when you intend to eventually DIVEST IT ANYWAY!!!
Also, You People can't run an Airline Properly. How can we expect you to run the Nation?
Ask Manmohan Singh. Why/What kept him quiet for so long?
Are Kalmadi and A Raja are Scapegoats to save Big Names like Harshad Mehta was in the 1992 Stock Market Scandal ?
Who let the BHOPAL GAS TRAGEDY Accused go Scot Free? ( 20,000 People died in that Tragedy)
Who ordered the State Sponsored Massacre of SIKHS in 84?
Please read more about, How Indira Gandhi pushed the Nation Under Emergency in 76-77, after the HC declared her election to Lok Sabha Void!
(I bet She had utmost respect for DEMOCRACY and JUDICIARY and FREE PRESS)
I guess you know the answers already. So My question is, Why the Double Standards in Judging Mayawati and members of your Family and Party?
I condemn Mayawati. But Is She the only one you feel Ashamed for?
What about the ones close to you? For their contribution to the Nation's Misery is beyond comparison.
You talk about the Land being taken away from the Farmers. How many Suicides have happened under your Parties Rule in Vidarbha ? Does that Not Ashame You ?
THE 72,000 CRORE LOAN WAIVER
Your Party gave those Farmers a 72,000 Crore Loan Waiver. Which didn't even reach the Farmers by the way.
So, Why don't you focus on implementing the policies which your govt. has undertaken, instead of earning brownie points by trying to manufacture consent by bombarding us with pictures of having food with Poor Villagers....
You want to feel ashamed. You can feel ashamed for your Party taking CREDIT for DEBITING the Public Money (72,000 crores) from the Government Coffers and literally Wasting it...
You want to feel ashamed.. Feel ashamed for that...
WHY ONLY HIGHLIGHT THIS ARREST?
Dear Rahul, to refresh your memory, you were arrested/detained by the FBI the BOSTON Airport in September 2001.
You were carrying with you $ 1,60,000 in Cash. You couldn't explain why you were carrying so much Cash.
Incidentally He was with his Columbian girlfriend Veronique Cartelli, ALLEGEDLY, the Daughter of Drug Mafia.
9 HOURS he was kept at the Airport.
Later then freed on the intervention of the then Prime Minister Mr.Vajpayee.. FBI filed an equivalent of an FIR in US and released him.
When FBI was asked to divulge the information, by Right/Freedom to Information Activists about the reasons Rahul was arrested ... FBI asked for a NO OBJECTION CERTIFICATE from Rahul Gandhi.
So Subramaniyam Swami wrote a Letter to Rahul Gandhi, " If you have NOTHING to HIDE, Give us the Permission" 

HE NEVER REPLIED!
Why did that arrest not make Headlines Rahul? You could have gone to the Media and told, "I am ashamed to call myself an INDIAN?".
Or is it that, you only do like to highlight Symbolic Arrests (like in UP) and not Actual Arrests ( In BOSTON)
Kindly Clarify.....
In any case, you want to feel ashamed, Read Along...
YOUR MOTHER'S SO CALLED SACRIFICE OF GIVING UP PRIME MINISTER SHIP in 2004.
According to a Provision in the Citizenship Act.
A Foreign National who becomes a Citizen of India, is bounded by the same restrictions, which an Indian would face, If he/she were to become a Citizen of Italy.
(Condition based on principle of reciprocity)
[READ ANNEXURE- 1&2]
Now Since you can't become a PM in Italy, Unless you are born there.
Likewise an Italian Citizen can't become Indian PM, unless He/She is not born here!

Dr. SUBRAMANIYAM SWAMI (The Man who Exposed the 2G Scam) sent a letter to the PRESIDENT OF INDIA bringing the same to his Notice. [READ LETTER TO THE PRESIDENT IN ANNEXURE -3]
PRESIDENT OF INDIA sent a letter to Sonia Gandhi to this effect, 3:30 PM, May 17th, 2004.
Swearing Ceremony was scheduled for 5 PM the same Day.
Manmohan Singh was brought in the Picture at the last moment to Save Face!!
Rest of the SACRIFICE DRAMA which she choreographed was an EYE WASH!!!
Infact Sonia Gandhi had sent, 340 letters, each signed by different MP to the PRESIDENT KALAM, supporting her candidacy for PM.
One of those letters read, I Sonia Gandhi, elected Member from Rai Bareli, hereby propose Sonia Gandhi as Prime Minister.
So SHE was Pretty INTERESTED! Until She came to know the Facts!

So She didn't make any Sacrifice, It so happens that SONIA GANDHI couldn't have become the PM of INDIA that time.
You could be Ashamed about that Dear Rahul!! One Credential Sonia G had, Even that was a HOAX!
THINK ABOUT YOURSELF.
You go to Harvard on Donation Quota. ( Hindujas Gave HARVARD 11 million dollars the same year, when Rajiv Gandhi was in Power)
Then you are expelled in 3 Months/ You Dropped out in 3 Months.... ( Sadly Manmohan Singh wasn't the Dean of Harvard that time, else you might have had a chance... Too Bad, there is only one Manmohan Singh!)
Some Accounts say, You had to Drop out because of Rajiv Gandhi's Assassination.
May be, But Then Why did you go about lying about being Masters in Economics from Harvard .. before finally taking it off your Resume upon questioning by Dr. SUBRAMANIYAM SWAMI (The Gentlemen who exposed the 2G Scam)
At St. Stephens.. You Fail the Hindi Exam.
Hindi Exam!!!
And you are representing the Biggest Hindi Speaking State of the Country?
SONIA GANDHI's EDUCATIONAL QUALIFICATIONS
Sonia G gave a sworn affidavit as a Candidate that She Studied English at University of Cambridge
[SEE ANNEXURE-6, 7_37a]
According to Cambridge University, there is no such Student EVER! [ SEE ANNEXURE -7_39]
Upon a Case by Dr. Subramaniyam Swami filed against her,
She subsequently dropped the CAMBRIDGE CREDENTIAL from her Affidavit.
Sonia Gandhi didn't even pass High School. She is just 5th class Pass!
In this sense, She shares a common Educational Background with her 2G Partner in Crime, Karunanidhi.
You Fake your Educational Degree, Your Mother Fakes her Educational Degree.
And then you go out saying, " We want Educated Youth into Politics!"

Letters sent by Dr. Swami to EC and then Speaker of Lok Sabha are in ANNEXURE 7_36 &7_35 RESPECTIVELY
Contrast that with Gandhi Ji , who went to South Africa, Became a Barrister, on Merit, Left all that to work for South Africa, then for the Country....
WHY LIE ABOUT EDUCATIONAL CREDENTIALS?
Not that Education is a Prerequisite for being a great Leader, but then you shouldn't have lied about your qualifications!
You could feel a little ashamed about Lying about your Educational Qualifications. You had your reasons I know, Because in India, WE RESPECT EDUCATION!
But who cares about Education, When you are a Youth Icon!!
YOUTH ICON
You traveled in the Local Train for the first time at the Age of 38.
You went to some Villages as a part of Election Campaign.
And You won a Youth Icon!! ... That's why You are my Youth Icon.
For 25 Million People travel by Train Everyday. You are the First Person to win a Youth Icon for boarding a Train. 
Thousands of Postmen go to remotest of Villages. None of them have yet gotten a Youth Icon.
You were neither YOUNG Nor ICONIC!
Still You became a Youth Icon beating Iconic and Younger Contenders like RAHUL DRAVID.
Shakespeare said, What's in a Name?
Little did he knew, It's all in the Name, Especially the Surname!
Speaking of Surname, Sir
DO YOU REALLY RESPECT GANDHI, OR IS IT JUST TO CASH IN ON THE GOODWILL OF MAHATMA? 
Because the Name on your Passport is RAUL VINCI.
Not RAHUL GANDHI..
May be if you wrote your Surname as Gandhi, you would have experienced, what Gandhi feels like, LITERALLY ( Pun Intended)
You People don't seem to use Gandhi much, except when you are fighting Elections. ( There it makes complete sense).
इस पोस्ट को आप निचे लिखे Website पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं.......
आज के लिए बस इतना हीं................
धन्यवाद"

Saturday, July 9, 2011

"चलते-चलते"

जैसे ही परीक्षाएं ख़त्म हुई प्रोजेक्ट और ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु आना हुआ. यहाँ का पिछले दिनों का अनुभव बहुत अच्छा रहा. सबसे खास अनुभव रहा भारत के आधुनिकतम रडार रोहिणी का प्रत्यक्षदर्शी बनना और इसके बारे में उन लोगों से जानना जिनने इसको मूर्त रूप दिया. अब यहाँ निर्धारित समयावधि पूरी कर लौटने की पूरी तैयारी हो चुकी है.
इस बीच एक बात जो अक्सर याद आती है वो है कालेज परिसर में लौटने  के बाद उन लोगों की अनुपस्थिति जिनके सामने हमने यहाँ कदम रखा था. कहने को तो कोई बात नहीं ऐसा तो हर साल होता है, वैसे भी अब संचार के इतने माध्यम मौजूद हैं कि इस अनुपस्थिति को आसानी से पाटा भी जा सकता है. और फिर समय-समय पर हमें प्रोफेशनल होने की नसीहत भी तो मिलती रहती है. फिर भी कल तक की उपस्थिति और कल को होने वाली अनुपस्थिति!!!! कुछ तो अलग है, और कुछ मायने भी हैं.....

कल परिसर की फिर वही सुबह होगी
कुछ वही जाने पहचाने चेहरे
लेकिन अनुपस्थित होंगे कुछ चेहरे
जिनके सामने हमने यहाँ रखे थे कदम,
कुछ वो जो हिस्सा रहे हमारे कहकहों के
तो कुछ जिनके साथ बढे थे कुछ कदम
कुछ वो भी जो साझीदार रहे दुःख दर्द में भी,
जोड़े  रहेंगे संचार के विभिन्न माध्यम
कल भी हमें कुछ ऐसे हीं, परन्तु
कल हम साथ थे एक दूसरे के उपस्थिति में
और कल साथ होंगे एक दूजे के अनुपस्थिति में
खुद को कल में ढूंढने के लिए 
कल को खुद को परिभाषित करने के लिए
आवश्यक है कि याद रखूं तुम्हे
अपने बीते लम्हों के साथ ,और
तुमसे भी उम्मीद रखूँगा कुछ ऐसा ही |

चलते-चलते समय और प्रसंग से ताल्लुक रखने वाली अपनी कुछ और पंक्तियाँ भी लिखता चलूँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक सफ़र   के   आखिरी   पड़ाव   से   निकले अभी हो
एक सफ़र की  एक नई     शुरुआत    होनी    है   अभी
दुआ और प्यार   के शब्द    तो     मिलते       ही रहेंगे
किसी सफ़र में किसी मोड़ पर मुलाकात भी होगी कभी. 

हाँ   सफ़र   में   दूर  जाने  को   कहंगे 
पर  दिलों   से दूर   कैसे  कर   सकेंगे
दूर है मंजिल  अभी   लम्बा  सफ़र है
शायद सफ़र में साथ फिर कभी रह सकेंगे. 
समयानुसार कुछ और बातें भी होती रहेंगी फिलहाल आज के लिए बस इतना हीं,,,,,,,,
धन्यवाद







Sunday, June 26, 2011

"भारत की खोज में भटका हूँ"

मैं तो विशुद्ध भारतीय हूँ जी. ऐसा इस लिए कहना पड़ रहा है कि यदा-कदा संकर प्रजाति के लोगों को देखकर थोडा असहज महसूस करता हूँ. ये ऐसे लोग हैं जो कि न तो भारत और भारतीयता को स्वीकार पाते हैं और न ही नकार पाते हैं. 
खैर आज के पोस्ट के लिए सोची समझी विषय वस्तु पर आते हैं. दरअसल मैं बात करने जा रहा था भारत में ही दो स्थानों के बीच न केवल  भाषाई बल्कि मानसिक भिन्नता की भी. मै किसी उत्तर,दक्षिण की बात करने नहीं जा रहा हूँ. क्योंकि ऐसा कह कर तो राजनितिक रोटियां सेंकी जाती है. इन छुद्र राजनीतिज्ञों के राजनीती का ही फल है की इस उत्तर,दक्षिण के चक्कर में स्वतंत्रता के ६४ वर्ष के बाद भी पूरे देश को एक सूत्र में जोड़े रखने  के लिए हम अबतक एक भाषा सुनिश्चित नहीं कर सके हैं.
भारत के एक छोटे से गाँव से शुरुआत कर कुशीनगर,गोरखपुर,बेतिया आदि छोटे शहरों से लेकर इलाहाबाद , लखनऊ और कानपुर जैसे बड़े शहरों में रहने का थोडा अनुभव रखता हूँ. जैसा की मेरे पिछली पोस्ट के द्वारा आपको विदित होगा की आजकल ट्रेनिंग और प्रोजेक्ट के लिए बंगलुरु में हूँ. वो भारत जहां  मैं अबतक रहता आया हूँ और वो जहाँ मैं आजकल रह रहा हूँ के बीच मुझे जो कुछ अंतर दिखा उसे एक पोस्ट के माध्यम से समेटने का मन बनाया और बैठ गया एक नई पोस्ट लिखने. मैंने क्या कुछ देखा और समझा उसे सूचीबद्ध करता हूँ......
१. बात करते हैं कुछ पूछे जाने पर उसके प्रतिउत्तर का. हाल ही का उदहारण दे रहा हूँ. आते समय मैंने झाँसी स्टेसन पर एक महानुभाव से एक पता पूछ लिया. फिर तो वो जैसे हमारे पीछे ही पड़ गए. मैं कहा से आ रहा हूँ? कहा जा रहा हूँ?क्यों जा रहा हूँ? इत्यादि पूछने के बाद उन्होंने जो कुछ बताया वो मेरे प्रश्न का उचित उत्तर नहीं था,जो कि मेरे साथ पहले भी कई बार हो चुका है. यहाँ पिछले १० दिन से रहते हुए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मैने जो कुछ पूछा, जितना पूछा उसका उचित उत्तर पाया. कारण यहाँ के लोगों की व्यस्तता कहिये, जल्द बताकर  टालने की प्रवृति कहिये या फिर उचित जानकारी होने पर ही उत्तर देने की स्थिति.  असलियत चाहे जो भी हो मुझे ये बातें अच्छी लगीं.
२. किसी कार्यालय के सबसे बड़े अधिकारी को  पहली बार एक साधारण सा आवेदन पत्र लेकर ( जिसे की मैं लेकर गया था) अपने ही कार्यालय में इधर-उधर दौड़ते देखा. जिनसे मेरा परिचय और इतिहास बस इतना सा था कि मैं ट्रेनिंग के लिए आया एक स्टुडेंट था और ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद शायद फिर कभी मिलना भी न हो. आपको बताता चलूँ की जहाँ से होकर मैं आया हूँ, रिक्शे वाले भी अपनी औकात दिखाने से बाज नहीं आते. फिर अधिकारी और ऑफिस के काम का क्या कहूँ? कुछ ही दिन पहले चक्कर लगाकर आया हूँ.यहाँ तो चहूँ ओर बिन मांगी व्यस्तता है जी.
३. वो लोग जिनके साथ काम करना है उनका वर्ताव देखकर तो ऐसा लग रहा है जैसे की जाने कब का परिचय हो. हालांकि उन लोगों के जिम्मे अपना भी ढेर सारा काम है,लेकिन पूछे जाने पर चीजों को इतने अच्छे से समझाते और बताते है जैसे की यहाँ इसी काम के लिए बैठे हों. ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा नहीं तो पोस्ट पढ़कर वे लोग इसे खुशामदी का तरीका न समझने लगें. इनके बारे में वहाँ पहुँच कर बताऊंगा.
४. पिछले कुछ दिनों से यहाँ रहते हुए जहाँ तक समझ पाया हूँ यहाँ जाट आन्दोलन,गुर्जर आन्दोलन,कायस्थ महासभा,ब्राह्मण महासभा जैसी कोई बात समझ नहीं आई. मेरे विचार से ऐसा करने वाले,कराने  वाले और इसमें भाग लेने वाले देश के सबसे बड़े दुश्मन है. एक सपनों का भारत जिसकी मैं परिकल्पना करता हूँ उसमे ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है.
५. यहाँ का सदा एक सा बना रहने वाला तापमान मुझे सबसे अच्छा लगा. यहाँ के इतने खुशनुमा वातावरण की वजह तलाशने की कोशिश तो की है पर अबतक सफलता नहीं मिली है. अबतक तो यही मान बैठा हूँ की ये सब यहाँ के भौगोलिक स्थिति की वजह से है. परन्तु एक बात और समझ में आती है कि यहाँ पेड़ पौधे भी तो ज्यादा हैं.
६. पेट भरे होने के बाद हाथ पैर तोड़कर बैठने के बजाय यहाँ काम के प्रति प्रतिबद्धता ज्यादा दिखी.
७. ट्रेन में हमारे साथ एक बूढी महिला आई थी. रात को करीब २ बजे जब हम लोग स्टेसन पहुंचे तो उनकी बेटी अपने पति के साथ स्टेशन पे खड़ी मिली. घर से दूर आकर ही सही कम से कम माता पिता के प्रति सम्मान तो दिखा. यहाँ तो लोग सुबह कुत्ते के साथ टहलने के लिए सुबह जग सकते है, उसके खान पान और दिनचर्या का ख्याल कर सकते हैं, लेकिन माता-पिता का क्या???
८. यहाँ अपने घर का कचरा दूसरे के घर के सामने या फिर सड़क या किसी खुली जगह  पे फेंक देने के बजाय नगरपालिका के गाडी का इन्तजार किया जाना श्रेयस्कर काम है. शायद यही कारण  है कि ये "क्लीन सिटी" के नाम से जाना जाता है. कूड़े के समुचित निष्कासन की व्यवस्था के साथ-साथ लोगों की सफाई के प्रति प्रतिबद्धता भी सराहनीय है.
९. यहाँ जहाँ रह रहा हूँ लोगों का व्यवहार बहुत सकारात्मक है. अनजान शहर से आये अनजान लोगों के साथ कुछ इस तरह का व्यवहार पहली बार देख रहा हूँ. हालांकि इसमें हमारे व्यवहार का भी कुछ प्रभाव हो सकता है फिर भी मैं खुद भी ऐसे व्यवहार को लेकर कभी-कभी असहज महसूस करता हूँ.
१०. यहाँ रहते हुए ज्यादा कुछ लिखने के बजाय कुछ बातें यहाँ से जाने के बाद लिखूं तो ज्यादा श्रेयस्कर  होगा. प्रशंसा कर  देने के बाद लोगों के विचार परिवर्तन का भी तो खतरा है जी. अतः सोच समझकर यथोचित बातें लिखने में ही भलाई है. समयानुसार कुछ और बातें होती रहेंगी.
अंततः यही कहना चाहूँगा की इस भारत को मैंने अपने सपनों के भारत के कुछ करीब पाया. लेकिन भारत की तलाश अभी जारी है. देखते हैं कब ,कहाँ और कैसे मिल पता हूँ अपने सपनों के भारत से. तबतक तो कही अटका ही हूँ, या यूँ कहूँ भटका ही हूँ भारत की खोज में.


धन्यवाद"

Wednesday, June 22, 2011

"यात्रा वृत"



आजकल कानपुर की तपती गर्मी से दूर बैंगलुरू में अच्छे मौसम का आनंद ले रहा हूँ. पिछले दिनों की ऐसी ढेर सारी बातें हैं जो आप सब तक पहुंचानी है. असमंजस की स्थिति में हूँ की कहा से शुरू करूँ और कहा तक करूँ. सब कुछ लिखना शुरू करूँ तो पोस्ट बहुत लम्बी हो जाएगी और यदि नहीं लिखा तो ऐसा लगेगा की ये तो बताया ही नहीं.चलिए संक्षेप में सब कुछ बताते चलता हूँ.
इस बीच  जैसे ही परीक्षाएं ख़त्म हुईं ट्रेनिंग के लिए बैंगलोर आने की तैयारियां शुरू हो गईं. इलेक्ट्रोनिक तथा रडार अनुसन्धान संस्थान, LRDE (DRDO) में ट्रेनिंग के लिए कॉल लेटर पहले ही आ चुका था. संस्थान के सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस क्लियरेंस सर्टिफिकेट की मांग की गई थी. और फिर इसे बनवाने के दौरान पुलिस महकमे की सच को नजदीक से जानने का मौका मिला,जिससे की येन केन प्रकारेण आप सब वाकिफ ही होंगे. लेकिन आपको यह तो बताता ही चलूँ की अबतक के जीवन में पहली बार सुविधा शुल्क देते हुए कुछ अजीब सा लगा. लेकिन इसके आलावा मेरे पास कुछ विकल्प भी नहीं था. आपको यह भी बताता चलूँ की उचित जगह पे उचित सुविधा शुल्क नहीं देने की वजह से मेरे एक साथी का सर्टिफिकेट अब तक नहीं बन पाया है. हालाँकि वो तो जल्द ही इसे जमा करने की अर्जी देकर हमलोगों के साथ ट्रेनिंग करने आ गया है परन्तु पिताजी प्रतिदिन दफ्तर में उपस्थिति दर्ज करते हैं.पूछे जाने पर एक सीधा सा उत्तर ये मिलता है कि... 
-आज तो साहब बैठे ही नहीं या फिर आज बहुत काम था इसलिए हो नहीं पाया.
 खैर यात्रा के अन्य पहलुओं पर भी नजर डालते हैं. मेरे साथ एक और नई बात ये थी कि पहली बार इतने लम्बे सफ़र पे निकला था. इसके लिए उत्सुकता भी बहुत दिनों से थी और यात्रा मजेदार भी रही. विभिन्न स्टेशनों पे उतरना फोटोग्राफ्स लेना और फिर यहाँ मिलने वाले  अलग-अलग भाषाओँ  को जानने वाले लोगों के साथ बातचित करने की कोशिश सबकुछ अविस्मर्णीय रहा. इस दौरान की कुछ फोटोग्राफ्स भी पोस्ट कर रहा हूँ आप खुद ही देख लीजिये. बैंगलुरू स्टेशन पर पहुँचने के बाद पता चला की हमे यहाँ आने के बाद जिनसे मिलना था वो तो घर पे हैं. फिर तो हम चारो ( मै पवन, यश, आयुष और राकेश जिसे की हम लोगों ने नामों के पहले अक्षरों  को मिलाकर ग्रुप प्यार नाम दे रखा है)  हिंदी भाषियों के लिए यहाँ के बारे में जानने और समझने के लिए थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोलना आना ही एक मात्र साधन समझ आया. और फिर  स्टेशन से बाहर निकलने के बाद टैक्सी   चालको ने अपने बातचीत से इस बात की पुष्टि भी कर दी. 

                                                                        पिछले एक सप्ताह में यहाँ के बारे में बहुत कुछ जानने और समझने का मौका मिला. यहाँ पहुँचने वाले दिन पूरे दिन की दौड़ भाग के बाद संस्थान में अपनी उपस्थिति दर्ज कराया,रहने के लिए पेइंग गेस्ट की खोज की और फिर अपनी आवश्यकता के कुछ स्थानों के बारे में जानकारी एकत्रित किया. इन सबमे " ग्रुप प्यार " का सम्मिलित प्रयास रहा. ३६ घंटे की यात्रा और फिर पूरे दिन के भाग दौड़ के बाद हम लोग अब एक दूसरे से बात चीत करने के मूड में भी नहीं थे. शाम को लगभग ८ बजे सोने के बाद हम लोग सुबह ८ बजे तक जगने की स्थिति में आ सके. फिर DRDO में शनिवार और रविवार की छुट्टी ने यहाँ के बारे में जानने और समझने का अच्छा अवसर दे दिया. अल्सुर लेक, शिव मंदिर, नेशनल पार्क, चिन्नास्वामी स्टेडियम, आई,आई.एम बैंगलुरू और फिर आते जाते रास्ते में मिलने वाले विभिन्न स्थानों को देखा और फोटोग्राफ्स लिए. कुछ फोटोग्राफ्स तो आज पोस्ट कर रहा हूँ और कुछ को अगली पोस्ट में स्थान दूंगा. 
कानपुर की गर्मी से दूर यहाँ का सदा एक सा बना रहने वाला तापमान यहाँ सबसे अच्छा लगा. साथ ही सफाई और पेड़ पौधों से सजा हरा-भरा शहर सुखद अनुभूति दे रहा है. आजकल आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल प्रतिदिन थोड़ी वर्षा कर जाते है जो कि यहाँ के वातावरण को कुछ और ही खुशनुमा बना जाते हैं. आते जाते यह बात समझ आ गई है कि हिन्दी आते हुए भी कन्नड़ बोलना यहाँ के टैक्सी चालकों का पैसा बनाने का एक तरीका है. और यही वजह है की हम लोग अब टैक्सी करने से परहेज करने लगे हैं. करते भी हैं तो ऐसी जगह की जहाँ की दूरी और किराए की पूरी जानकारी है. यह सच है कि यहाँ कन्नड़ बोलने वाले बहुसंख्यक हैं परन्तु हिन्दी बोलने और समझने वालों की कमी भी नहीं है.अब सुबह ८.३० से शाम ४.३० तक के ट्रेनिंग के बाद ब्लॉगिंग के लिए अच्छा खासा समय मिल जाया करेगा. अतः शेष बातें अगली पोस्टों के माध्यम से पहुँचाता रहूँगा. आज के लिए बस इतना ही....



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धन्यवाद"