Sunday, April 11, 2010

"महाप्रयोग: क्या और कैसे?"

http://www.textually.org/ringtonia/archives/images/set3/particle-collider-black-holes.jpg
पिछले दिनों  दैनिक-Stroke के नाम से प्रतिदिन  के खास समाचारों को कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर लगाने कि एक अच्छी शुरुआत की गई. इसके लिये द्वितीय,तृतीय और चतुर्थ वर्ष के छात्रों को लेकर बनाई गई पाँच सदस्यीय टीम का एक सदस्य मै भी हूँ. पहले ही दिन पढ़ने वालों का काफी अच्छा support मिला. इस बीच कुछ लोगों ने सम्पादकीय पन्नों को हिंदी में देने का सुझाव दिया. सामान्यतः अंग्रेजी में मिलने वाली जानकारियों को हिंदी में लिखना, उसे अंग्रेजी में लिखने से थोड़ा ज्यादा मेहनत का काम था और फिर ऐसे में सप्ताह के सातों सम्पादकीय पन्ने  हिंदी में देना संभव नही था.लेकिन जनता की मांग पर सप्ताह के दो सम्पादकीय हिंदी में देने का निर्णय लिया गया. दैनिक-Stroke के लिये  मेरे द्वारा लिखे सम्पादकीय पन्नों में से कुछ एक को यहाँ भी पोस्ट करता रहूँगा. हिंदी का पहला सम्पादकीय पन्ना  मैंने फिर से शुरू हुए महाप्रयोग पर The Hindu और BBC हिंदी से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार किया जिसे आज यहाँ भी पोस्ट कर रहा हूँ..........................


 http://www.rustylime.com/media/image/large_hadron_collider.jpg
सितम्बर २००८ में बंद हो गये Large Hadron Collider ने  एक बार फिर से अपना काम करना शुरू कर दिया है. इतिहास के इस प्रयोग से काफी उम्मीदें  हैं और विज्ञान के क्षेत्र में ढ़ेर सारी नई खोजों की उम्मीद भी  की जा रही हैं.
क्या है ये?: 
अबतक का सबसे बड़ा प्रयोग माने  जाने वाले इस महाप्रयोग के लिये Switzerland  और फ़्रांस की सीमा पर अरबों  डॉलर     लगाकर पिछले २० साल में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्थापित की गई. प्रयोग के लिये बनाई गई मशीन जिसे हम Big Bang Machine के नाम से जानते हैं पर काम करने वाले वैज्ञानिक प्रोटॉन के कणों को एक साथ टकराने की कोशिश करेंगे जो इससे पहले कभी नहीं किया जा सका.वैज्ञानिको का मानना है कि इससे प्रकृति और ब्रम्हाण्ड के कुछ रोचक रहस्यों को खोलने में मदद मिलेगी की आखिर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई.

http://solreka.com/blog/wp-content/hadron_collider_eight_days_left.jpg
 कैसे होगा प्रयोग?:
European Center for Nuclear Research(CE RN) पर लगभग ८० कुशल वैज्ञानिकों के समूह द्वारा किया जाने वाला यह प्रयोग पिछले साल शुरू हुआ था लेकिन तकनीकि खराबी के कारण इसे रोक दिया गया था. विशाल हेड्रन Collider में एटम्स को लगभग सैट ख़राब एलेक्ट्रोन वोल्ट के टकराव के साथ शुरू होगा और ये १८ से २४ महीनों तक जारी रहेगा. इस पूरे महाप्रयोग के जरिये मिलने वाली जानकारी से पृथ्वी की उत्पत्ति की Big Bang theory को समझने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है. इस प्रयोग के लिये प्रोटोनो  को २७ किलोमीटर लम्बी गोलाकार  सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं  में भेजा जायेगा  और वैज्ञानिकों के अनुसार ये एक सेकेण्ड में ग्यारह हजार से भी अधिक परिक्रमा पूरी करेंगे. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकरायेंगे. अनुमान लगाया गया है कि इस दौरान प्रोटोन के टकराने कि लगभग ६० करोड़ से भी ज्यादा घटनाये  होंगी जिन्हें दर्ज किया जायेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौरान १०० मेगाबाईट  से भी ज्यादा आंकड़े एकत्रित किये जा सकेंगे.
वैज्ञानिकों ने यह सूचना भी दी है कि इस महाप्रयोग  से हासिल होने वाले आंकड़ों के अध्ययन में समय लगेगा और लोगों को तुरंत  नतीजे कि उम्मीद नही रखनी चाहिए. महाप्रयोग के प्रवक्ता गुइडो टोनेली ने इस सम्बन्ध में कहा की " मुख्य खोज उसी समय सामने आएगी जब  हम अरबों घटनाओ  को पहचाने और विशेष घटना नजर आए जो पदार्थ का नया आयाम पेश करे". उन्होंने  BBC को बताया कि " यह कल ही नहीं होने वाला  है इसके लिये महीनों और वर्षों के धैर्य पूर्ण काम की ज़रुरत है". धैर्य रखे और उम्मीद करेंकी वैज्ञानिकों का यह प्रयास सफल हो ताकि हमें ब्रम्हांड के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके.
धन्यवाद"

Thursday, February 18, 2010

"लोग आते गये और कारवाँ बनता गया"

वेलेंटाइन डे ढेर सारी हलचल लिये इस बार फिर एक नए रंग में उपस्थित हुआ. हर बार की तरह इस बार भी पक्ष और विपक्ष के ढेर सारी बहसों का साझीदार रहा. इस बार कुछ नया करने का मन बना पक्ष-विपक्ष सबकी एक साथ बैठकर सुनने की योजना बना डाली. योजना तो सही थी लेकिनं इसके लिये बोलने वालों के साथ-साथ सुनने और उचित निष्कर्स निकलने वालों की भी जरुरत थी.
 कुछ नया करने से पहले मैंने अनुमति लेना श्रेयष्कर समझा जो कि मुझे आसानी से मिल गई. मुझे कुछ नया करता देख एक Class mate भी साथ हो लिया. सूचना  लिखी गई और आवश्यक स्थानों पर लगा दिया गया. मन में ढेर सारी बातें चल रही थी कि क्या होगा?,क्या बोलना होगा?,कैसे क्या करना होगा?. इसी उधेड़ बुन में पूर्व नियोजित समय भी आ गया.जब मै सुनिश्चित स्थान पे पहुंचा तो वंहा  किसी को न देख थोड़ा असमंजस में पड़ गया. थोड़ी देर के लिये तो नाराजगी भी हुई कि रूम में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यहाँ आकर क्यों नही बोल रहे. वैसे  मेरी नाराजगी बे वजह थी धीरे-धीरे रेलगाड़ी के डिब्बो की जो कि आम भारतीय सोच है  एक लम्बी कतार खड़ी हो गई.समय से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. विचारों का एक प्रवाह उमड पड़ा.लगभग डेढ़ घंटे चली इस वाद विवाद प्रतियोगिता को मैंने इन वाक्यों में समेटने का प्रयास किया है...........                                                                              
१)  इस दिवस का नामकरण किसी प्रेमी के नाम से नही बल्कि यूनान के किसी संत के नाम पे रखा गया जिन्होंने राजाज्ञा के विरुद्ध किसी प्रेमी युगल कि शादी करा दी.
२)  प्रेम विवाह कि प्रथा हमारे देश में गन्धर्व विवाह के नाम से प्राचीन कल से चली आ रही है.
३)  वर्तमान समय में हमारे समाज में फैली रुढ़िवादियों के पीछे हमारी प्राचीन संस्कृति नही बल्कि सल्तनत और मुगलकालीन व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं.
४)  समाज से किसी बुराई को दूर करने के लिये विचार क्रांति की आवश्यकता है न कि विरोध प्रदर्शन और रैलियों कि
५)  अपनी सीमओं और मान्यतावो को ध्यान में रखकर आप सबकुछ करने को स्वतंत्र हैं.
६)  हमारे निरंतर उन्नति  की तरफ  बढ़ते कदम पतंग की तरह हैं जिसे आगे बढ़ने के लिये अनुशासन रूपी धागे की आवश्यकता है.
७)  समाज को सभ्यता और संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाले लोग इसकी शुरुआत अपने घर से करें.
८)  वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समाज में इमोसन और प्रोफेसन के बीच उचित समन्वय ही हमारा सोसल मैनेजमेंट होगा.
९)  प्यार में पागलपन के लिये कोई स्थान नही है.
१०)  प्यार और मित्रता करने में जल्दबाजी नही करें और यदि करें तो अंत तक निभाएं.



अंततः वाद विवाद की समाप्ति मैंने इन शब्दों के साथ किया कि "करो चाहो जो लेकिन इस बात का ख्याल रख कि हमारी प्रगति के साथ कोई समझौता न हो"

 अंततः यह समस्त घटना क्रम इस पंक्ति को चरितार्थ कर गया कि
"मै अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर 
               लोग आते गये और कारवां बनता गया"


              













(सभी फोटोग्राफ्स मेरे रूम पार्टनर राकेश मीणा  के सौजन्य से) 


                                                   

Friday, February 5, 2010

"तेरी जय हो, विजय हो"

देर से ही सही समस्त भारत वासियों को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं.सफ़र के साथ कदमताल करते हुवे आज हम अपना ६१ वाँ गणतंत्र दिवस भी मना चुके. बीते ६१ वर्ष संघर्षों,परेशानियों के साथ-साथ उपलब्धियों के वर्ष भी रहे और हमारे दिलो दिमाग में ढेर सारी उम्मीदों का सृजन कर गये जिन्हें साकार करने के लिये हम निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं.....

                                             हर बार की तरह इस बार भी गणतंत्र  दिवस को कुछ काम करने के उद्देश्य से लेखनी ने दौड़ लगाई, लेकिन इस बार न जाने क्यों इसने कुछ दुस्साहसी  काम कर डाला. मै तो हर बार इससे अपनी ही कहलवाता रहा लेकिन इस बार इसने मेरी एक न सुनी और पडोसी पाकिस्तान के लिये कुछ ऐसी बात कह डाली.......................
नापाक इरादे रखते हो और    पाक   कहे   तुम   जाते हो
विचलित रहा है पथ खुद का और हमको भ्रमित बनाते हो
कहता यदि मै आतंकी तो उल्टी   ऊँगली    दिखलाते   हो
क्या समझा है तुमने हमको जो नित-नित हमको भरमाते हो
हम सहते हैं,चुप रहते हैं, ना कहते हैं आखिर कबतक ??????????

                    तुम यदि हद को पार किये विकल्प कहो तब क्या होंगे
                    सोचो तब  तेरा क्या होगा जब हम भी अपने पर होंगे
                    पाकी साकी को छोडो तुम है वक्त अभी भी जग जाओ
                     कर्म करो न कुछ ऐसा जो खुद ही खुद पे तुम शर्माओ

इतना ही नही इसने  तो कुछ ऐसा भी कह डाला............................
.
वह दिवस जिसके लिये देनी पड़ी कुर्बानियां
वह दिवस जिसके लिये झेलनी पड़ी विरानियाँ
वह दिवस जिसके लिये किसी ने सपने संजोये रात-दिन
वह दिवस जहा से शुरू हुआ अपना सुदिन
    गुजर गया एक वर्ष आ गया है फिर वह दिवस
                 आज हम एकत्रित हैं जिस दिवस पर

भाषणबाजियों के लिये यही दिवस
कसमे   खाने  को    यही    दिवस
हुई है     छुट्टी     मिली   है मुक्ति
आराम फरमाने को है  यहीं दिवस
                                      पर सोचें थोड़ा उनके लिये भी..........
        सपने     के     लिये     जिनने     अपनों   को छोड़ दिया
        उजड़ा सुहाग सुनी हुई गोदें फिर भी आंसू को रोक लिया
        भ्रस्टाचारी    है   समाज    और   स्वेच्छाचारी   नेता  हैं
       षड्यंत्रकारी है पडोसी   अपना   अक्सर   घाव  जो देता है
घर बैठे हम सोचा करते, T.V पर देख रो लेते हैं
कट जाए चाहे जैसे जीवन थोड़े में खुश हो लेते हैं
                               वक्त है कम दो शब्द कहूँ जो हैं फौलादी
                                      आतंकवाद,अशिक्षा,बढती आबादी
                             रोक सकें तो रोकें नही तो निश्चित बर्बादी

आज चलते-चलते भारत के साथ-साथ समस्त भारत वाशियों के लिये यही कहना चाहूँगा कि "तेरी जय हो,विजय हो"

Wednesday, January 13, 2010

"नूतन वर्ष मंगलमय हो"



आज सबसे  पहले तो "सब नू लोहड़ी दी लख लख बधाइयाँ". सेमेस्टर exam के वजह से नव वर्ष कि बधाइयाँ  नही दे सका हूँ, जिसके लिये आज उपस्थित हूँ.
       "देर    से  दुरुस्त   देने के लिये , सुस्त   को कुछ चुस्त देने के लिये,
      नव ऊर्जा का संचार करने के लिये,मै आ गया नव वर्ष कि बधाई लिये"

                                    "अलविदा २००९,स्वागत २०१०" 
                                                                                     
                     http://nousha.files.wordpress.com/2006/12/new-year.JPG                                              
                                                    "नूतन वर्ष मंगलमय हो"
फोन कॉल,मेल,मैसेज आदि कुछ ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा नव वर्ष कि बधाइयाँ लगभग सबतक पहुँच चुकी हैं लेकिन ब्लॉग के माध्यम से Think more.............
                  "अब तक बधाइयों का सिलसिला थोड़ा  गर्म था
                  कविता अबतक शांत थी और कवि अभी तक मौन था
                  अब जब सबकुछ शांत है बधाइयाँ प्रेषित कर  रहा हूँ
                  न प्रत्यक्ष तो शब्द से ही खुशियों कि झोली भर रहा हूँ.

"आगत का स्वागत करें जोश से, गत को रखकर जेहन में
इस उदिशा संग संकल्प करें और, ऊर्जा भर लें तन मन में
आने वाला कल अपना है,जो कल तक का अपना सपना है
अवरोध  हटाने को सारे, आल इज वेल अब हमको जपना है"

ब्लॉग के माध्यम से शुभकामनायें  देने की ये शुरुआत है और उम्मीद करता  हूँ कि ये कुछ ऐसे ही जारी भी रहेगी लेकिन इस शुभकामना पोस्ट में आने वाले वर्षों के लिये भी शुभकामनाएँ इन शब्दों में.............

                                      "मै पवन हूँ ,हूँ हवा का एक झोंका,
                                       कबतलक मै साथ में चलता रहूँगा,
                                       हर वर्ष की बधाइयाँ इस वर्ष ले लें,
                                      जबतक है जीवन दुआ मै करता रहूँगा.

अपने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के साथ-साथ  सम्पूर्ण विश्व के सुख-शांति और समृद्धि के लिये बहुत सारी शुभकामनाएँ...................................
http://www.mamarocks.com/NewYearAnimals.jpg

समझे वैसे हम हैं जैसे

हाँ तो आज PUT ख़त्म हुआ,और अब सेमेस्टर इग्जाम्स की बारी है. PUT की वजह से मैं  अपनी एक नई कविता यहाँ पोस्ट कर पाने में सक्षम न हो सका सो आज यहाँ उसे लेकर उपस्थित हूँ.
बात कुछ ऐसी है कि इस बीच मेरे एक सीनियर ने मुझसे कुछ ऐसा लिखने को कहा जो कि तूफान ला दे; फिर तो मुझे शुभद्रा कुमारी चौहान कि ये पंक्तियाँ अचानक याद हो आईं...

"भूषण अथवा कवि चन्द्र नही
 बिजली भर दे वो छंद नही
 अब कलम बंधी स्वक्छंद नही
 फिर कौन बताये कौन हंत
 वीरों का कैसा हो बसंत"
                           शुभद्रा कुमारी चौहान

ये बात तो है कि मेरी कलम बंधी नही है,लेकिन ऐसा क्या कुछ लिख दूँ जो बिजली भर दे तूफान ला दे और उसमे भी ऐसे समय में जब मेरे  पास इसके लिये ज्यादा कुछ सोचने का टाइम भी नही था. लेकिन फिर  भी मै उन्हें यह आश्वाशन दिया कि शाम तक कुछ लिखने का प्रयाश करूँगा. ज्यादा सोचने के बजाय मैंने एक विशुद्ध भारतीय सोच जो कि मेरे दिलो दिमाग में बसता है को सब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया जो कि कुछ ऐसे बन पड़ा...

                                 "चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं" 

हम शांति के दूत रहे हैं  शांति  हमको प्यारी है
बुद्ध ने जो सन्देश दिया वो अब भी यहाँ से जारी है
रूप न देखो साज  न देखो  दिल से देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



                     विश्व एक है धर्म एक है सोंच लिये हम बैठे हैं
                     ही जानते दुनिया वालें क्यों हमसे कुछ ऐठें हैं
                     अभी समझ में न आएगा कल को समझेंगे कैसे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं



 जिनने भी है हाथ मिलाया हमने उनका साथ निभाया
 दो-दो हाथ किया है उससे जो जो है हमसे टकराया
 दूर से सायद समझ न पाओ पास आ देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                     गद्दारों ने था जब हाथ बढाया हमने था तब हाथ मिलाया
                     सशंकित  थे हम तब भी पर संस्कृति  साथ थी न ठुकराया
                     पर याद रहे उन्हें उनके खातिर हम क्रांति पाले बैठे हैं
                     चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


 आह्वान है युवा शक्ति को जग को अपनी क्षमता दिखला दें
 भ्रम फैला है जग में जो भी अपने सामर्थ्य  से उसे मिटा दे
 कर विष्फोट सुना दें सबको हम भारत वाशी कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


                            " समझ सके न जो अबतक वो अब समझें
                              सोंचे दिलो दिमाग से और फिर तब समझे
                              कल ग़लतफ़हमी में  रास्ते हो  अलग हमारे
                              उससे पहले तक तो  हमको वो  समझें"
उपरोक्त भाव विभिन्न देशों से भारत के अब तक के रिश्तों को लेकर आये जिन्हें मैंने शब्दों का रूप दिया. वैसे अपने पडोसी देश पाकिस्तान के लिये कुछ अलग ही भाव रखता हूँ और वो डा.कुमार विश्वाश की इन पंक्तियों से शब्दसः मेल करती हैं...

"मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इंकार करता है
 भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
 यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वो लेकिन
 मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है"
                                                       डाँ. कुमार विश्वास

इन पंक्तियों को पहली बार सुन कर ही ऐसा लगा जैसे ये मेरे अपने उदगार हों और इसी लिये मैंने शब्दसः इन्हे लिख डाला. पडोसी देश या फिर यूँ कहें की अपना सगा भाई पाकिस्तान,  आमेरिका और चीन से चाहे जितनी भी सहायता पा ले या फिर वे चाहे जितना भी अपनापन दिखला लें लेकिन इन लोगों की नीति और रीति उसे भली भांति पता है. मुझे दुःख इस बात का है कि सबकुछ जन समझकर भी पडोसी इतना अनजान क्यों बना हुआ है? मै ये मान सकता हूँ कि आज पिकस्तान कि जिन गलत कामों में संलिप्तता जताई जा रही  है उसमे वहाँ  रह रहे कुछ लोगों का हाथ है लेकिन ये बहुमत कि इच्छा है ये बात कदापि स्वीकार करने के लायक नही है. आज के लिये इतना ही.
धन्यवाद"    

"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

पिछले मदर्स डे (10 may) को मैंने अपने माँ को कुछ ऐसे याद किया...............................

                           "माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"

                   तुमसे था मेरा प्रथम मिलन 
                   था तुमसे ही पहला साक्षात्कार 
                   पाला पोशा और बड़ा किया
                   फिर दिया मुझे है यह आकर
                   कैसे मै तुमसे मुहं मोडूं
                   और तज दूँ मै तेरा संसार 
                   माँ कौन .....................
मेरे बचपन कि वो बातें 
तुमसे बिछडन कि वो रातें 
जब रख तकिये के नीचे सर
सो जाता था रोते रोते
तब दूरी  और रुलाती थी
जब न थी चिठ्ठी न था तार
माँ कौन..............
                 तुमसे दूर जाने का गम 
                 जल्दी लौट नही पाने का गम
                 लिख कर के पन्नो पर 
                 वो घंटों घंटों का करना कम
                 माँ वो सब मेरा पागलपन था 
                 या उसके पीछे था तेरा प्यार
                 माँ कौन.............
बिना अन्न और पानी के 
मेरे खातिर तू व्रत रखती 
दिल में दबा कष्टों को अपने
मुझसे हँस-हँस बातें करती
गढा गया नही अबतक पैमाना
जो माप सकेगा तेरा प्यार 
माँ कौन...............
                    यदि आह शब्द निकला मुहँ से 
                    आँखे तेरी भर जाती हैं 
                    मेरे कष्टों को कम करने को
                    माँ कितना कष्ट उठाती है
                    फिरा के सर पे तू ऊँगली 
                    कर देती मुझमे ऊर्जा संचार 
                    माँ कौन ...............
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई अपना रूठा
जब छोड़ गया इस जग से कोई
जब लगा कि सर पे कोई तारा टूटा
माँ तेरे आँचल के नीचे 
देखा था मैंने जीवन सार
माँ कौन.............
                  पाने के लिये माँ तेरा प्यार 
                  तज दूंगा मै सारा संसार
                  माँ तू न रही यदि इस जग में 
                  फिर कौन करेगा तुझसा प्यार
                  माँ कौन करेगा तुझसा प्यार.

(कुछ ऐसा ही है माँ का प्यार. आप क्या कहना चाहेंगे??????????????????????????????????????????                  वैस ये कविता एक हिन्दी मासिक पत्रिका के दिसम्बर वाले अंक में आने वाली है, लेकिन ब्लॉग के माध्यम से आपने इसे पहले ही पढ़ लिया)
धन्यवाद: 

Saturday, December 19, 2009

"समझें वैसे,हम हैं जैसे"

हाँ तो आज PUT ख़त्म हुआ,और अब सेमेस्टर इग्जाम्स की बारी है. PUT की वजह से मैं अपनी एक नई कविता यहाँ पोस्ट कर पाने में सक्षम न हो सका सो आज यहाँ उसे लेकर उपस्थित हूँ.
                                                                 बात कुछ ऐसी है कि इस बीच मेरे एक सीनियर ने मुझसे कुछ ऐसा लिखने को कहा जो कि तूफान ला दे; फिर तो मुझे शुभद्रा कुमारी चौहान कि ये पंक्तियाँ अचानक याद हो आईं...


"भूषण अथवा कवि चन्द्र नही
बिजली  भर दे   वो छंद   नही
अब कलम बंधी स्वक्छंद नही
फिर कौन  बताये   कौन   हंत
वीरों का    कैसा    हो    बसंत"
                            शुभद्रा कुमारी चौहान

ये बात तो है कि मेरी कलम बंधी नही है,लेकिन ऐसा क्या कुछ लिख दूँ जो बिजली भर दे तूफान ला दे और उसमे भी ऐसे समय में जब मेरे पास इसके लिये ज्यादा कुछ सोचने का टाइम भी नही था. लेकिन फिर भी मै उन्हें यह आश्वाशन दिया कि शाम तक कुछ लिखने का प्रयाश करूँगा. ज्यादा सोचने के बजाय मैंने एक विशुद्ध भारतीय सोच जो कि मेरे दिलो दिमाग में बसता है को सब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया जो कि कुछ ऐसे बन पड़ा...

"चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं"
हम शांति के दूत रहे हैं शांति हमको प्यारी है
बुद्ध ने जो सन्देश दिया वो अब भी यहाँ से जारी है
रूप न देखो सज न देखो दिल से देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं


विश्व एक है धर्म एक है सोंच लिये हम बैठे हैं
ही जानते दुनिया वालें क्यों हमसे कुछ ऐठें हैं
रूप न देखो साज न देखो दिल से देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं

जिनने भी है हाथ मिलाया हमने उनका साथ निभाया
दो-दो हाथ किया है उससे जो जो है हमसे टकराया
दूर से सायद समझ न पाओ पास आ देखो कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं

गद्दारों ने था जब हाथ बढाया हमने था तब हाथ मिलाया
सशंकित थे हम तब भी पर संस्कृति साथ थी न ठुकराया
पर याद रहे उन्हें उनके खातिर हम क्रांति पाले बैठे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं

आह्वान है युवा शक्ति को जग को अपनी क्षमता दिखला दें
भ्रम फैला है जग में जो भी अपने सामर्थ्य से उसे मिटा दे
कर विष्फोट सुना दें सबको हम भारत वाशी कैसे हैं
चाहत है दुनिया हमको समझे,बस वैसे हीं हम जैसे हैं

" समझ सके न जो अबतक वो अब समझें
सोंचे दिलो दिमाग से और फिर तब समझे
कल ग़लतफ़हमी में रास्ते हो अलग हमारे
उससे पहले तक तो हमको वो समझें"

उपरोक्त भाव विभिन्न देशों से भारत के अब तक के रिश्तों को लेकर आये जिन्हें मैंने शब्दों का रूप दिया. वैसे अपने पडोसी देश पाकिस्तान के लिये कुछ अलग ही भाव रखता हूँ और वो डा.कुमार विश्वाश की इन पंक्तियों से शब्दसः मेल करती हैं...
"मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इंकार करता है
भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है"
                                                   डाँ. कुमार विश्वास

इन पंक्तियों को पहली बार सुन कर ही ऐसा लगा जैसे ये मेरे अपने उदगार हों और इसी लिये मैंने शब्दसः इन्हे लिख डाला. पडोसी देश या फिर यूँ कहें की अपना सगा भाई पाकिस्तान, आमेरिका और चीन से चाहे जितनी भी सहायता पा ले या फिर वे चाहे जितना भी अपनापन दिखला लें लेकिन इन लोगों की नीति और रीति उसे भली भांति पता है. मुझे दुःख इस बात का है कि सबकुछ जन समझकर भी पडोसी इतना अनजान क्यों बना हुआ है? मै ये मान सकता हूँ कि आज पिकस्तान कि जिन गलत कामों में संलिप्तता जताई जा रही है उसमे वहाँ रह रहे कुछ लोगों का हाथ है लेकिन ये बहुमत कि इच्छा है ये बात कदापि स्वीकार करने के लायक नही है. आज के लिये बस इतना ही.
धन्यवाद"