आज कुछ लिखने की शुरुआत करने से पहले सभी शिक्षकों को इस दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. सबसे पहले तो डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सरीखे लोगों के लिये लिखी अपनी ये पंक्तियाँ लिखता चलूँ कि..............
कल भी कुछ कर गये थे वे , वे अब भी कुछ कर जाते हैं
कल काम से कुछ कर गये थे वे अब नाम से कुछ कर जातेहैं
किसी पोस्ट के माध्यम से तो नहीं लेकिन मुझे ऐसा लगा की अशोक चक्रधर जी का सीधा -साधा पात्र चकरू नई शिक्षा व्यवस्था को देखकर भी जरुर चकरा जाता होगा. इस बार चकरू की परेशानियों को मैंने कुछ ऐसे सामने लाने का प्रयास किया है.................
क्यों न चकरू चकराए चक्रधर भाई
नई शिक्षा व्यवस्था में है नई बीमारी आई
है नई बीमारी आई दीखते सब पीड़ित हैं भाई
कही छात्र लिये बैठे सिगार और कही गुरु कर रहे पढाई
चकरू चतुर हैं रहे नहीं, न चिकनी बात कभी है बनाई
दुनियादारी और छल कपट इनको नहीं सुहाई
है इनको नहीं सुहाई अतः बात सीधे है बताई
दोनों मिलकर दे सकते जग को नव ऊर्जा और तरुणाई
कहें हर्ष सहर्ष सुनें सब गुरुजन, प्रियजन और भाई
गुरु रहेगा गुरु, शिष्य-शिष्य रह जाई
अपनी-अपनी सीमा की पहचान जो इनको आई.
समय और वातावरण से तो ताल्लुक नहीं रखती लेकिन आज की लिखी हुई अपनी कुछ एक और पंक्तियाँ भी आज यहाँ लिखता चलूँ..................
भरे पेट अपना चाहे जैसे भी हो
पता न चलता रोग कहाँ और कैसी ये लाचारी है,
दो समय की रोटी जुटा हीं पाना लक्ष्य यदि है जीवन का
तो फिर सच है की पशुओं का जीवन भी हमपे भारी है .
भारत और भारतीय सोच को दर्शाती ये पंक्तियाँ भी कि...........
बसा जो हो अपना घर तो हर घर न्यारा लगता है
प्यार जो हो अपने दिल में तो हर दिल प्यारा लगता है,
कुछ ऐसी हीं खास बात है हम भारत वासी लोगों में
दुश्मन चाहे लाख सताए हमको प्यारा लगता है.
अंततः एक बार फिर से शिक्षक दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. शिक्षक दिवस और हाल में ख़त्म हुए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से सम्बंधित फोटोग्राफ्स के लिये इंतजार कीजिये अगली पोस्ट का क्योंकि अभी पोस्ट कर पाना संभव नहीं हो पा रहा. आज के लिये बस इतना ही............
धन्यवाद"
Sunday, September 5, 2010
Sunday, August 15, 2010
शुभकामनायें: पर अतुल्य भारत के सपने का क्या होगा?

धन्यवाद"
Monday, July 26, 2010
"लौट आया हूँ फिर से उसी दिनचर्या में"
जब परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो लगा की चलो काम से काम कुछ दिन के लिये इस दिनचार्य से मुक्ति तो मिली लेकिन छुट्टियाँ जाने कैसे बीत गईं और हम लोग फिर से उसी दिनचर्या में लौट भी आए. वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद फिर से छात्रावासीय दिनचर्या में लौट आने का ये सिलसिला पिछले ग्यारह सालों से चलता आ रहा है. इन पंक्तियों के माध्यम से मैंने कुछ ऐसा ही कहने के प्रयास किया है..........
फिर से लौट आया हूँ उसी दिनचर्या में
पिछली ग्यारह सालों से रहता आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी होते रहे हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
कल का भी लक्ष्य वही होगा
बातें भी कुछ सोची सी होंगी
पर दूर होकर इस दिनचर्या से
कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"
फिर से लौट आया हूँ उसी दिनचर्या में
पिछली ग्यारह सालों से रहता आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी होते रहे हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
कल का भी लक्ष्य वही होगा
बातें भी कुछ सोची सी होंगी
पर दूर होकर इस दिनचर्या से
कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"
Wednesday, July 14, 2010
"कश्मीर-एक समस्या?

कश्मीर आखिर कब तक झेलता रहेगा यह सब? कभी सेना का खौफ,कभी आतंक का साया और कभी सत्ता लोलुप नेताओं की नीतियाँ सबने परेशान किया है इसे. आखीर किसका साथ दे कश्मीरी जनता? सब का लगभग एक ही मकसद नजर आता है. किसने उसे रातों में नींद और दिन में चैन देने का प्रयास किया है. भारतीय स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कश्मीर के लोग आज तक अपने आप को स्वतन्त्र महसूस नहीं कर पा रहे, इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?
1. क्या वे भारत की प्रगति के साथ खुद को जोड़ना नहीं चाहते?
२. क्या कश्मीरी युवाओं में हमारी तरह देश प्रेम का जज्बा नहीं?
३. क्या उनके मन में उनके साथ जो कुछ भी होता है उसके लिये रोष नहीं होता? ४. क्या उनके शरीर में दिल नाम की कोई चीज नहीं जिसमे करुणा और संवेदना हो?
५. क्या वहाँ रहने वाले लोगों का हृदय हमारी तरह नहीं जो कि नित्य प्रति वहाँ होने वाले घटनाओं के बारे में या फिर वहाँ की स्थिति के बारे में सुनकर सोचकर या फिर पढ़कर रो पड़ता हो?
६. क्या वहा के माँ बाप बच्चों को खुन की होली खेलने की तालीम देते हैं, क्या उनके नजर में मार काट गोले बारूद के अलावा और कुछ भी नहीं?
७. क्या वहाँ के युवाओं के दिमाग में भारत की तस्वीर बदल देने की क्षमता रखने वाली सोच नहीं?
८. क्या उन्हें सही गलत का एहसास नहीं जो वे भटके हुए के से जीवन यापन कर रहे हैं?
१०. क्या वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसके लिये वहाँ की जनता जिम्मेदार है?

ऐसा कहा गया है की कवि और साहित्यकार समाज का आईना होते हैं और ऐसे में साठ के दशक में कश्मीर के मशहूर शायर महजूर यदि कुछ ऐसा लिखते हैं कि "हिंदुस्तान तेरे वास्ते मेरा जिस्म और जान हाजिर है, लेकिन दिल तो पाकिस्तान का है" तो फिर उस समय के कश्मीरी आवाम के लोगों के मनः स्थिति के बारे में बहुत आसानी से सोचा जा सकता है. ऐसे समय में उन्हें विश्वास में लेने की ज़रूरत थी, लेकिन कुछ ऐसा करने का प्रयास नहीं किया गया. कल जब समाचार पत्र पढ़ रहा था तो पता चला की इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके समाधान के लिये जब सभी पार्टियों की बैठक बुलाई गई तो कुछ पार्टियों ने सीधे तौर पर बैठक में जाने से इंकार कर दिया. क्या वे सीधे तौर पे यह सन्देश देना नहीं चाहते की उनकी चाहत है कि आज जो भी स्थिति है वो यथावत बनी रहे और जो कुछ हो रहा है वो उनके संरक्षण में हो रहा है?
मामला राजनितिक है ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूँगा लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा की वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसमे वहाँ कि राजनितिक पार्टियों के भागीदार होने की बात को नाकारा नहीं जा सकता और उन्हें किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाना चाहिए. ऐसे में हमें कठोर से कठोर कदम लेने से भी नहीं हिचकना चाहिए, नहीं तो कश्मीर?????????????
(पोस्ट में आवश्यक सुधार कर पाने के लिये समय नहीं बचा. आज ही घर जाने के लिये ट्रेन पकडनी है. अतः यदि वर्तनी सम्बन्धी कोई गलती हो तो आप लोग क्षमा करके पचा लीजियेगा)
धन्यवाद"
Monday, June 7, 2010
"विश्व पर्यावरण दिवस: छोड़ दी राजनीति मैने तेरे लिये"


कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ तक अच्छी है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो तब तो जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना के उड़ान की
प्रदूषित जल के साथ एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के साथ एक स्वस्थ शरीर की
प्रदूषित मृदा से उत्तरोत्तर उत्पादन की
संभव नहीं है यह तबतक जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.

किसी मजार का दीया क्या कर सकेगा
कोई उधर का दीया कबतक रहेगा
मेरा दीया जो साथ है मेरे निरंतर
मेरे तीमीर को बस वही ही हर सकेगा.
कुछ तो अपने और कुछ भारतीय और विदेशी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया तेरी हर चाल से वाकिफ होता हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है मुझको
मेरा भोलापन शायद तब छू न पाया तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत न्यायिक दंश कहूँ
या मानव कृत विध्वंश कहूँ
पर जो भी कहूँ यह सत्य कहूँ की
देखा था कभी हरियाली तुममे
तेरा बाहू पाश था कसा हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.

धन्यवाद"
Thursday, June 3, 2010
"असफलता"

मै दुखी हूँ कि कोई मनहूस सी हवा मुझको छूकर गुजरी है
पर क्या कहूँ उनके लिये जिनसे कि ये होकर गुजरी है.
फिर भाव आते गये और लेखनी दौड़ती रही कुछ ऐसा लिख देने के लिये..................
असफलता जो ले आती है
अरमानों का पतझड़
झंकझोर जाती है
मस्तिष्क और दिलो दिमाग को
मुश्किल होता है सृजित कर पाना
नए अरमानों को
सजा पाना कुछ नए सपने
लेकिन फिर भी
उठ खड़े होना
सपनों के कोंपले उगाना
उन्हें पत्तों में विकसित करना

एक मजबूत ह्रदय का|||||||||||||
लेकिन इन सबके बावजूद
मात्र एक शब्द
जो अस्थिर सी कर जाता है
कंपकंपा देता है ह्रदय को
रोक देता है सांसों को
चारों तरफ
जिसका नाम है
असफलता"
उन असफल अभ्यर्थियों की तरफ से जो अब भी हार नहीं मानना चाहते सफल अभ्यर्थियों को कहना चाहूँगा
कि.....................
गिरते हैं तो उठ खड़े होना सीख लेंगे
रखते हैं दंभ जीत को हम खींच लेंगे
ऐ विजय के नेक और बहादुर सिपाही
एक दिन हम भी तुमसे कदम मिलाना सीख लेंगे.

धन्यवाद"
Tuesday, June 1, 2010
"हम किस गली जा रहे हैं"

संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............

या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?

आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????

जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????
राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!!
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