Sunday, August 15, 2010

शुभकामनायें: पर अतुल्य भारत के सपने का क्या होगा?

http://im.in.com/media/blish/m/photos/2009/Aug/15_august_5_11770_420x315090814011604_515x343.jpg
http://festivalsofindia.in/independenceday/img/independence-day.gifआज सबसे पहले समस्त भारतवासियों को ६4 वे स्वतंत्रता दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. न ज्यादा कुछ कहने को है और न ही ज्यादा कुछ समझाने को.मेरी समझ से  इस इंटरनेट के मायानगरी से जुड़े हुए सभी लोग देश की वस्तुस्थिति से पूर्णतया वाकिफ हैं. लम्बी लाफ्फेबाजियों से बचते हुए आप सब से यही कहना चाहूँगा की अतुल्य भारत का जो सपना हमने देखा है,वो किसी व्यक्ति विशेष  के कार्यों से साकार नहीं किया जा सकता. इसके लिये प्रत्येक भारतीय को अपने स्तर से योगदान करना होगा,कथनी और करनी के अंतर को मिटाना होगा. मेरी चाहत है कि "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ", वाक्य अपने वास्तविक अर्थों को प्राप्त कर सके. अंततः आप सब से अनुरोध है कि अपनी जिम्मेदारियों को इमानदारी पूर्वक निभाते हुए देश के सर्वांगीण  विकास  के लिये काम करते रहें ताकि अपना अतुल्य भारत का सपना साकार हो सके अन्यथा ये सपना बस सपना बनकर ही रह जायेगा.
धन्यवाद"

Monday, July 26, 2010

"लौट आया हूँ फिर से उसी दिनचर्या में"

जब परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो लगा की चलो काम से काम कुछ दिन के लिये इस दिनचार्य से मुक्ति तो मिली लेकिन छुट्टियाँ जाने कैसे बीत गईं और हम लोग फिर से उसी दिनचर्या में लौट भी आए. वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद फिर से छात्रावासीय  दिनचर्या में लौट आने का ये सिलसिला पिछले ग्यारह सालों से चलता आ रहा है. इन पंक्तियों के माध्यम से मैंने कुछ ऐसा ही कहने के प्रयास किया है..........       


        
फिर से        लौट    आया हूँ     उसी       दिनचर्या में
पिछली ग्यारह     सालों   से   रहता  आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी    होते रहे     हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर  कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
             कल का भी लक्ष्य वही होगा
             बातें भी कुछ सोची  सी होंगी  
             पर दूर होकर इस दिनचर्या से
             कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.  
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"    

Wednesday, July 14, 2010

"कश्मीर-एक समस्या?

http://www.lib.utexas.edu/maps/middle_east_and_asia/kashmir_rel_2003.jpg
http://static.guim.co.uk/Guardian/world/gallery/2008/sep/10/1/GD8762394@KASHMIR,-INDIA---SEPT-3107.jpgलगभग पिछले एक महीने से कुछ भी पोस्ट न कर पाने के लिये खुद के आलस्य को जिम्मेदार ठहराऊंगा क्योंकि यदि चाहता तो एक दो पोस्ट तो कर ही सकता था. खैर पिछले कई दिनों से कश्मीर में हो रहे घटनाक्रम के बारे में पढ़कर और सुनकर मुझे काफी अफ़सोस हुआ. कभी  कश्मीर की खुबशुरती के बारे में पढ़कर मैंने यह दृढ निश्चय किया था कि एक बार  कश्मीर जरुर जाऊंगा. लेकिन आज स्थिति ये है कि कश्मीर का नाम सुनकर काले कपडे से ढके किसी आतंकी का चेहरा दिमाग में घूम जाता है.
             कश्मीर आखिर कब तक झेलता रहेगा यह सब? कभी सेना का खौफ,कभी आतंक का साया और कभी सत्ता लोलुप नेताओं की नीतियाँ सबने परेशान किया है इसे.                                               आखीर  किसका साथ दे कश्मीरी जनता? सब का लगभग एक ही मकसद नजर आता है. किसने उसे रातों में नींद और दिन में चैन देने का प्रयास किया है. भारतीय स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कश्मीर के लोग आज तक अपने आप को स्वतन्त्र महसूस नहीं कर पा रहे, इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?
1. क्या वे  भारत की प्रगति के साथ खुद को जोड़ना नहीं चाहते?
२. क्या कश्मीरी युवाओं में हमारी तरह देश प्रेम का जज्बा नहीं?
३. क्या उनके मन में उनके साथ जो कुछ भी होता है उसके लिये रोष नहीं होता?                                                    ४. क्या उनके शरीर में दिल नाम की कोई चीज नहीं जिसमे करुणा और संवेदना हो?
५. क्या वहाँ रहने वाले लोगों का हृदय हमारी तरह नहीं जो कि नित्य प्रति वहाँ होने वाले घटनाओं के बारे में या फिर वहाँ  की स्थिति के बारे में सुनकर सोचकर या फिर पढ़कर रो पड़ता हो?
६. क्या वहा के माँ बाप बच्चों को खुन की होली खेलने की तालीम देते हैं, क्या उनके नजर में मार काट गोले बारूद के अलावा और कुछ भी नहीं?
७. क्या वहाँ के युवाओं के दिमाग में भारत की तस्वीर बदल देने की क्षमता रखने वाली सोच नहीं?
८. क्या उन्हें सही गलत का एहसास नहीं जो वे भटके हुए के से जीवन यापन कर रहे हैं?
१०. क्या वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसके लिये वहाँ की जनता जिम्मेदार है?
http://www.destination360.com/asia/india/images/s/kashmir.jpg                                           सच तो यह है कि उपरोक्त सारी बातें उनके विरुद्ध लिखीं गई हैं. उनके साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिये हमारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं. क्या यह सच नहीं की यदि हमारे नीति निर्माता अबतक चाहे होते तो इस समस्या का निदान बहुत पहले निकल गया होता?
                      ऐसा कहा गया है की कवि और साहित्यकार समाज का आईना होते हैं और ऐसे में साठ के दशक में कश्मीर के मशहूर शायर महजूर यदि कुछ ऐसा लिखते हैं कि "हिंदुस्तान तेरे वास्ते मेरा जिस्म और जान हाजिर है, लेकिन दिल तो पाकिस्तान का है"  तो फिर उस समय के कश्मीरी आवाम के लोगों के मनः स्थिति के बारे में बहुत आसानी से सोचा जा सकता है. ऐसे समय में उन्हें विश्वास में लेने की ज़रूरत थी, लेकिन कुछ ऐसा करने का प्रयास नहीं किया गया. कल जब समाचार पत्र पढ़ रहा था तो पता चला की इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके समाधान के लिये जब सभी पार्टियों की बैठक बुलाई गई तो कुछ पार्टियों ने सीधे तौर पर बैठक में जाने से इंकार कर दिया. क्या वे सीधे तौर पे यह सन्देश देना नहीं चाहते की उनकी चाहत है कि आज जो भी स्थिति है वो यथावत बनी रहे और जो कुछ हो रहा है वो उनके संरक्षण में हो रहा है?
 मामला राजनितिक है ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूँगा लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा की वहाँ जो कुछ भी हो रहा है उसमे वहाँ कि राजनितिक पार्टियों के भागीदार होने की बात को नाकारा  नहीं जा सकता और उन्हें किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाना चाहिए. ऐसे में हमें कठोर से कठोर कदम लेने से भी नहीं हिचकना चाहिए, नहीं तो कश्मीर?????????????

 (पोस्ट में आवश्यक सुधार कर पाने के लिये समय नहीं बचा. आज ही घर जाने के लिये ट्रेन पकडनी है. अतः यदि वर्तनी सम्बन्धी कोई गलती हो तो आप लोग क्षमा करके पचा लीजियेगा)
धन्यवाद"

Monday, June 7, 2010

"विश्व पर्यावरण दिवस: छोड़ दी राजनीति मैने तेरे लिये"

http://upperhunter.local-e.nsw.gov.au/files/4870/File/community.jpghttp://thumbs.dreamstime.com/thumb_398/1242079845KZx1wm.jpgपर्यावरण और पर्यावरण दिवस पर बातें और भाषणबाजियां  तो बहुत हो चुकी,अब समय है कुछ करने का और यह एक ऐसा मुद्दा है जहाँ  हम अपनी गलतियों को दूसरों पर थोपकर आगे नहीं बढ़ सकते. तो फिर इंतजार किस बात की.किस एक धक्के का इंतजार है जो सबकुछ बदलने के लिये आवश्यक है उठिए जागिये और शुरू  हो जाइये आज से.अभी से एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये. न कुछ बताने की ज़रूरत है और न ही समझाने की. बस तीन R, Reduce,Reuse और  Recycle के  concept को ध्यान में रखते हुए, ईमानदारी पूर्वक अपना काम करते हुए बढ़ते जाइये पर्यावरण  प्रदूषण नियंत्रण के मुहिम के इस अन्नंत यात्रा की तरफ.
                                                       कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य  लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ  तक अच्छी  है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो   तब   तो  जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना   के उड़ान   की
प्रदूषित जल के साथ  एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के   साथ  एक   स्वस्थ शरीर  की
प्रदूषित   मृदा     से    उत्तरोत्तर  उत्पादन   की
संभव नहीं है   यह     तबतक    जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.

http://www.2dayblog.com/images/2009/june/saveenvironment.jpgविदेशी तकनीकि और पैसों पर निर्भर न रहने और अपने यहाँ मौजूद संसाधनों से ही स्वदेशी तकनीक विकशित करने के उद्देश्य से मैंने कुछ ऐसा लिखा.................
किसी मजार का दीया  क्या   कर   सकेगा
कोई उधर   का  दीया    कबतक     रहेगा
मेरा दीया जो    साथ  है    मेरे      निरंतर
मेरे तीमीर को बस   वही ही हर     सकेगा.

कुछ तो अपने और कुछ भारतीय  और विदेशी परिदृश्य  को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया  तेरी    हर  चाल  से   वाकिफ     होता     हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता  हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है   मुझको
मेरा भोलापन  शायद तब  छू   न     पाया   तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................

ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत  न्यायिक    दंश     कहूँ
या मानव   कृत     विध्वंश    कहूँ
पर जो भी कहूँ यह  सत्य कहूँ की
देखा था कभी  हरियाली     तुममे
तेरा बाहू पाश   था   कसा    हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
http://iggydonnelly.files.wordpress.com/2009/06/world20environment20day6.jpgपर्यावरण प्रदुषण नियंत्रण के लिये मै भी कुछ प्रोजेक्ट्स पे काम कर रहा हूँ वे जैसे ही पूरा होंगे उनकी जानकारी और उससे जुड़े अपने अनुभव ब्लॉग के माध्यम से आप सब तक पहुंचाउंगा.अब तक आप पोस्ट के शीर्षक और पोस्ट के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे होंगे. चलते चलते ये बताता चलूँ की कल मै हाल ही में रिलीज मूवी राजनीति देखने जाने वाला था. टिकट भी ले लिया गया था. लेकिन मैंने पर्यावरण से सम्बंधित कुछ जानकारी लेना और अपने विचारों को सबके सामने रखने की बात  को श्रेयस्कर समझा मूवी देखने का प्लान कैंसिल कर दीया जो कि उपरोक्त शीर्षक का कारण बना.
धन्यवाद"

Thursday, June 3, 2010

"असफलता"

http://repairstemcell.files.wordpress.com/2009/03/winner-loser.jpgपिछले  दिनों  सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ. एक परिणाम जिसके सकारात्मक आने को लेकर मैं बहुत आशान्वित था, वहाँ असफलता हाथ लगी.थोड़ी देर के लिये मैं परेशान हो गया लेकिन ऐसे समय में अक्सर साथ देने वाली लेखनी याद हो आई और मैंने झटपट लेखनी उठाई और उस समय दिमाग में आने वाले भावों को पन्नों पर उकेर डाला. पहली पंक्ति कुछ ऐसे बन पड़ी..............


मै दुखी हूँ कि कोई मनहूस सी हवा मुझको छूकर गुजरी  है
पर क्या कहूँ  उनके   लिये  जिनसे कि   ये होकर  गुजरी  है.

फिर भाव आते गये और लेखनी दौड़ती रही कुछ ऐसा लिख देने के लिये..................
असफलता जो ले आती है
अरमानों का पतझड़                      
झंकझोर जाती है
मस्तिष्क और दिलो दिमाग को
मुश्किल होता है सृजित कर पाना
नए अरमानों को
सजा पाना कुछ नए सपने
लेकिन फिर भी
उठ खड़े होना
सपनों के कोंपले उगाना
उन्हें पत्तों में विकसित करना
http://www.avforums.com/forums/attachments/past-winners/14286d1116619098-march-2005-competition-winner-theme-sun-sun.jpgपरिचायक है दृढ विश्वास का
एक मजबूत ह्रदय का||||||||||||| 

लेकिन इन सबके बावजूद
मात्र एक शब्द
जो अस्थिर सी कर जाता है                   
कंपकंपा देता है ह्रदय को
रोक देता है सांसों को
चारों तरफ                      
जिसका नाम है
असफलता"

उन असफल अभ्यर्थियों की तरफ से जो अब भी हार नहीं मानना चाहते सफल अभ्यर्थियों को कहना चाहूँगा
कि.....................
गिरते हैं तो  उठ खड़े      होना      सीख     लेंगे               
रखते हैं    दंभ      जीत   को     हम   खींच लेंगे
ऐ  विजय   के नेक       और       बहादुर सिपाही
एक दिन हम भी तुमसे कदम मिलाना सीख लेंगे.
                                     
            
http://franchisessentials.files.wordpress.com/2009/08/winners-and-losers1.jpgप्रारंभिक परीक्षा,मुख्य परीक्षा और फिर साक्षात्कार  तक पहुँच कर असफलता का हाथ लगना एक अभ्यर्थी के लिये काफी दुखद है. मुझे इस बात का मलाल है कि वे अभ्यर्थी जो कि साक्षात्कार तक पहुँचते हैं जिसमें पास होने के बाद हम उन्हें देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारियां देने को होते हैं वो साक्षात्कार में हुई थोड़ी सी चूक मात्र से बाहर हो जाते हैं और फिर उन्हें शुरुआत वहीँ  से करनी होती है जहा से वो पहले चले  होते हैं. यह बात तो सही है कि थोड़ी सी चूक भी चूक ही होती है लेकिन फिर भी.......
धन्यवाद"

Tuesday, June 1, 2010

"हम किस गली जा रहे हैं"

सच कहिये तो ब्लॉग जगत में छुट्टियों का लेखक और पाठक हूँ. कल परीक्षाएँ समाप्त हुईं तो आज कुछ  नया पढ़ने और लिखने के लिये ब्लॉग जगत में उपस्थित हों गया. पिछले दिनों ढ़ेर सारी बातें जो आपतक पहुँचाने का मन बनाया लेकिन मन में ही दबाकर रख लिया. खैर कोई बात नहीं आज उन सबको समेटे यहाँ उपस्थित हों गया हूँ .
संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............
 १. एक राजनेता/राजनेत्री  जो कि अपने आप को जनता का सेवक/सेविका और भी न जाने क्या-क्या बताते/बताती हैं के पास ८७ करोड़ तक की प्रापर्टी कहा से आ जाती? क्या उन्हें उनके जीविकोपार्जन के लिये इतने पैसे मिलते हैं की वे उसमे से इतना बचा पाते हैं???????
या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट  कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?
कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती की वे खुद ही वहाँ  तक पहुचने को तत्पर हों जाएँ????
आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????
यदि नहीं तो फिर ऐसा कर के सरकार क्या हासिल कर लेना चाहती है??????????
जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????

राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!! 

Monday, May 3, 2010

"जाओ जाकर जीतो जग को"

http://www.howtogetback.com/blog_images/small_love_poems.jpg पिछले दिनों चल रही परीक्षाओं ने यह सोचने का ज्यादा मौका ही नहीं दिया की पिछले दो साल से जिन लोगों की हमारे बीच उपस्थिति  हमे बल देती थी,जब हम लोग कॉलेज कैम्पस में नए थे तब जिन लोगों ने हमें पग-पग पर चलना सिखया वो लोग अब कैम्पस में पहले की तरह नहीं मिलने वाले. झार-खंडात्मक संबंधों(झारखण्ड में चलने वाले राजनितिक सम्बन्ध) में विश्वास नहीं रखता और शायद यही कारण है कि आज-कल कुछ अटपटा सा महसूस कर रहा हूँ. ख़ुशी है कि संचार के विभिन्न माध्यम अब भी हमें जोड़े रख सकेंगे लेकिन फिर भी कुछ कमी सी है. खैर छोडिये  ज्यादा भावुक होने की ज़रूरत नहीं. आज सबसे  पहले उन सभी लोगों से कहता चलूँ कि:

ऐ मेरे अन्जान अपरिचीत जीवन पथ के  
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc3DVF14VB29iCieqQHj9G71QhkvL25fd_kwohEi9yCKN-zK-mKJVkKygeLHAxfOggfwzBG-PslmOK4kdVcAaR8ZkVEZXtnHSc6Max_bIN4zBi4vJcINmvxgV3UZFwwhZEyhUua-WsuXOQ/s400/256928733_e09a18341b.jpgपरिचीत साथी
मेरे दुःख के साथी
या फिर
मेरे कहकहों के सहयोगी
मै रहूँगा आजीवन
तुम्हारा आभारी 
नहीं जानता हूँ कल को
परन्तु जानता हूँ कि
कल अलग हो जाने हैं रास्ते हमारे
शायद इतने दूर और इतने अलग की
फिर मिल न सके
लेकिन विश्वास दिलाता हूँ कि
याद रखूँगा तुम्हे
अपने उन बीते हुए लम्हों के साथ
और तुमसे भी उम्मीद रखूँगा
कुछ ऐसा हीं"

इस समय और मौसम से ताल्लुक रखने वाली अपनी ये पंक्तियाँ भी लिखता  चलूँ ..............

"अबतक तुम कहा किये की हमको भूल न पाओगे
                            अब सुन लो तुम मेरी भी याद बहुत  तुम आओगे."

"हाँ   सफ़र  में    दूर    जाने     को कहेंगे
पर   दिलों   से  दूर   कैसे   कर    सकेंगे
दूर है मंजिल    अभी   लम्बा     सफ़र है               
शायद सफर में साथ फिर कभी रह सकेंगे"

 परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो झटपट मूवी देखने का प्लान बना डाला और हाल ही में रिलीज हॉउस फुल देखने पहुँच गया. समय अच्छा कट गया और साथ ही यह सीख मिल गई की लगातार असफलताएँ आदमी को भले ही बंनौती बना दें,लेकिन इमानदारी ,सच और आगे बढ़ने की चाहत किसी न किसी रूप में किसी सैंडी से साक्षात्कार करवा जाएगी जो कि पूरे जीवन की दशा और दिशा बदल देगी. अपने सीनियर्स के लिये कहना चाहूँगा की यदि अबतक उन्हें किसी तरह  की असफलता हाथ लगी हो तो परेशान न हों आने वाला कल सब ठीक कर देगा लेकिन आवश्यकता है: कड़ी मेहनत,दूर दृष्टि और सच्चे लगन की. सबके उज्जवल भविष्य के लिये ढ़ेर सारी शुभकामनाओं के साथ ही यह कहना चाहूँगा की आप जहाँ भी रहें विजेता बनकर रहें.

 

http://michal-yablong.tripod.com/imagelib/sitebuilder/pictures/photos/ocean.jpg
    
चलते-चलते एक चीर परिचीत पंक्ति भी याद दिलाता  चलूँ......
                        "उजाले अपनी    यादों के   हमारे   साथ रहने दें
                                 न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए"

 धन्यवाद"