Tuesday, March 22, 2011

"ये रंग तुम्हारे याद रहेंगे"

 आज सबसे पहले तो समस्त ब्लॉगर बन्धुवों को होली की ढेर सारी शुभकामनायें. इंटरनेट के ठीक ढंग से काम न करने की वजह से बधाइयाँ समय पर नहीं प्रेषित कर सका. वैसे हमारे यहाँ तो होली मिलन और बधाइयों का सिलसिला तो होली के बाद भी कई दिनों तक चलते रहता है, अगर आप में से किसी के वहाँ ऐसा न होता हो तो फिर समय से ऐसा न कर पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.
पिछले दिनों एक कार्यक्रम के भाग दौड़ के बीच एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया. लभग १० दिन तक बिस्तर की सेवा लेने के बाद अब रिकवरी का समय चल रहा है. चोट की जगह पर रंग गुलाल इत्यादी की वजह से संक्रमण को देखते हुए डाक्टर ने होली के हुडदंग से दुर रहने की नशीहत दे दी,और फिर इस प्रकार इस बार होली की छुट्टियों में घर जाने के विचार को बदलना पड़ा. सबसे बड़ी बात तो ये थी की वहाँ किसको-किसको रंग गुलाल के लिए मना करते रहेंगे और फिर कैसे हुआ? क्या हुआ? कब हुआ? इत्यादी प्रश्नों को सोचकर होली से दुरी कर लेना ही श्रेयस्कर समझा. हालाँकि यह निर्णय इतना आसन भी नहीं था......
होली छुट्टी के पूर्व संध्या पर होली के हुडदंग से संबंधित योजना बनाई जा रही है,रंग गुलाल इत्यादि की व्यवस्था की जा रही है. यहाँ तक की इन दो दिन की छुट्टियों में घर पे क्या कुछ करना है सब कुछ अभी से तय किया जा रहा है. मै कल को सोच रहा हूँ! जब सब चले जायंगे तो फिर क्या करेंगे? कैसे रहेंगे? लैपटॉप पे फिल्मों की लिस्ट देखता हूँ! ये भी तो इतनी नहीं की समय अच्छे से कट जाये और फिर ये तो मुझे ज्यादा देर तक बांधे भी नहीं रख सकतीं. छुट्टियों में नेट भी नहीं आएगा अतः ब्लॉगिंग भी संभव नहीं है. सब कुछ सोचकर अगले दिन होने वाले पेपर के लिए तैयारी पे ध्यान केन्द्रित करता हूँ.
पेपर देकर लौट आया हूँ. चारो तरफ घर जाने की या फिर उसके लिए तैयारी को लेकर भाग दौड़ मची है. दुआएं लेने देने का कार्यक्रम चल रहा है. बालकनी से बहार नजर दौड़ता हूँ,यहाँ तो रंग गुलाल के साथ होली का हुडदंग भी चल रहा है. पिछले साल तो मै भी इस हुडदंग में सामिल था,खैर कोई बात नहीं,,,,,,,
-कुछ लोगों को घर ले जाने के लिए हाल ही में ख़त्म हुए फेस्ट की ड़ी.वी.डी बना कर देनी है, लैपटॉप निकल कर उसे तैयार करने में लग जाता हूँ...
हुडदंग अब कम हो गई है,अधिकतर लोग जा चुके हैं. मै भी यह मान बैठा हूँ कि इस बार रंग गुलाल का संपर्क भी नहीं होने पायेगा.फोन की घंटी बजती है.....
-नीचे आओ घर जा रहे कम से कम हाथ तो मिला ही सकते हैं ?
-हाँ क्यों नहीं ? (अच्छा है जो कोई घर जाते समय हाथ मिलाकर बधाई देना चाहता है वर्ना कुछ लोगों ने तो घर न जाने की वजह  पुछने की जहमत भी नहीं उठाई)
-एक चीर-परिचित और सरल मुस्कान....
मै भी बिना कुछ सोचे समझे हाथ बढ़ा देता हूँ, तलहथियों के बिच कुछ ठंढ का सा आभास होता है. पूरा हाथ रंग चूका है,हम दोनों मुस्करा रहे हैं....
तुम्हारी मुस्कान सबकुछ बयां कर रही है.तुम्हे पता है कि चेहरे के नए भरे घावों पर इन्फेक्सन का खतरा है पर हाथों पर तो ऐसा कुछ नहीं? तुम खुश हो रंग लगाकर और मई खुश हूँ रंगकर. चलते चलते बस इतना ही कह पाता हूँ कि
-इस होली के लिए बस इतना ही (छात्रावास कि सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते सोंचता हूँ.......)

होली तो आती रहेगी हर साल
मिलते रहेंगे न जाने कितने लोग
और बिछड़ते भी रहेंगे
जैसे तुम भी तो.....
परन्तु जब भी होली कि चर्चा होगी
जब भी मुझपर रंग वर्षा होगी
क्या मै भूल सकूँगा इस होली को?
इस होली के लिए तो जो था
बस इतना सा था....
होली के दिन रतन,राकेश और धर्मेश के साथ जो मस्तियाँ की उसकी फोटोग्राफ्स भी पोस्ट कर रहा हूँ परन्तु रंग के नाम पर तो बस उतना सा था. वैसे मै तो बता गया कैसी रही मेरी होली और आपकी????????????????


                                                     (दुर्घटने की खबर तो इन्होने भी ली)


                                           (कार्यक्रम के सफलता के साथ दुर्घटना का दर्द जाता रहा)


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2 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्‍याख्‍या।

Dr Kiran Mishra said...

achha likhte hai kuch holi hamesha yaad raha jati hai