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अब बात करते हैं जाकिर अली रजनीश जी की. कार्यक्रम थोडा लंबा खिंच गया लेकिन ऐसे में भी अपनी यात्रा के थकन के बावजूद रजनीश जी ११.१५ तक हम लोगों के साथ रहे. ढलती रात को देखते हुए मैंने सुबह में उनसे मिलने का मन बनाया और उन्हें होटल तक छोड़ने को सोचा. जब मैंने उनके साथ होटल तक जाने की बात की तो उन्होंने बड़ी सरलता से यह कहते हुए मना कर दिया की कहा परेशान होओगे कल सुबह मिल लेंगे अभी मै अकेले ही चला जाऊंगा. सुबह लगभग ८.३० बजे जब मै पवन मिश्रा सर के साथ होटल पहुंचा तो ये चाय की चुस्कियां ले रहे थे. बातों बातों में इन्होंने बताया की उनकी लगभग ६५ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं,साथ ही पराग,नंदन जैसी पत्रिकावों में ६०० से ज्यादा कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं. मुझे सबसे अच्छी बात लगी रजनीश जी की खुद की विकसित की गई लिपि जिसे की उन्होंने अपने कालेज के समय में खुद से विकसित किया था. रजनीश जी ने अपने डायरी के पन्नों पर उकेरी टेढ़ी मेढ़ी लाइनों को दिखाते हुए बताया की "मै खुद की बने इस लिपि में ज्यादा सहज महसुस करता हूँ और केवल मै ही इसमें लिख और पढ़ सकता हूँ". मेरे और पवन सर के साथ हुए बातचीत के दौरान हम लोगों ने,जाति,धर्म,.विज्ञान ,राजनीति आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा की.
3 comments:
congratulation for organizing such a good program in the KIT campus , while you was not well due to accident ..
i wish good luck for you ..
i miss your function.....
Iski video clip mujhe de dena dear...
किसी और के बहाने अपने आप से मिलने का भी अलग मजा होता है। शुक्रिया।
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
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