इस बीच एक बात जो अक्सर याद आती है वो है कालेज परिसर में लौटने के बाद उन लोगों की अनुपस्थिति जिनके सामने हमने यहाँ कदम रखा था. कहने को तो कोई बात नहीं ऐसा तो हर साल होता है, वैसे भी अब संचार के इतने माध्यम मौजूद हैं कि इस अनुपस्थिति को आसानी से पाटा भी जा सकता है. और फिर समय-समय पर हमें प्रोफेशनल होने की नसीहत भी तो मिलती रहती है. फिर भी कल तक की उपस्थिति और कल को होने वाली अनुपस्थिति!!!! कुछ तो अलग है, और कुछ मायने भी हैं.....
कल परिसर की फिर वही सुबह होगी
कुछ वही जाने पहचाने चेहरे
लेकिन अनुपस्थित होंगे कुछ चेहरे
जिनके सामने हमने यहाँ रखे थे कदम,
कुछ वो जो हिस्सा रहे हमारे कहकहों के
तो कुछ जिनके साथ बढे थे कुछ कदम
कुछ वो भी जो साझीदार रहे दुःख दर्द में भी,
जोड़े रहेंगे संचार के विभिन्न माध्यम
कल भी हमें कुछ ऐसे हीं, परन्तु
कल हम साथ थे एक दूसरे के उपस्थिति में
और कल साथ होंगे एक दूजे के अनुपस्थिति में
खुद को कल में ढूंढने के लिए
कल को खुद को परिभाषित करने के लिए
आवश्यक है कि याद रखूं तुम्हे
अपने बीते लम्हों के साथ ,और
तुमसे भी उम्मीद रखूँगा कुछ ऐसा ही |
चलते-चलते समय और प्रसंग से ताल्लुक रखने वाली अपनी कुछ और पंक्तियाँ भी लिखता चलूँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक सफ़र के आखिरी पड़ाव से निकले अभी हो
एक सफ़र की एक नई शुरुआत होनी है अभी
दुआ और प्यार के शब्द तो मिलते ही रहेंगे
किसी सफ़र में किसी मोड़ पर मुलाकात भी होगी कभी.
हाँ सफ़र में दूर जाने को कहंगे
पर दिलों से दूर कैसे कर सकेंगे
दूर है मंजिल अभी लम्बा सफ़र है
शायद सफ़र में साथ फिर कभी रह सकेंगे.
समयानुसार कुछ और बातें भी होती रहेंगी फिलहाल आज के लिए बस इतना हीं,,,,,,,,
धन्यवाद
2 comments:
bahut hi achi line likhi hai..
I like ur blog.
Change Kanpur
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