Tuesday, December 1, 2009

मैंने सोचा:

कविता के लिए:
कविता जो रोकती है
अंतरतम के तुफानो को 
सोखती है,उफानों को 
ला देती है 
अनंत से खीचकर 
एक बिंदू पर 
जहा होते हैं 
शांति सपने और विश्वाश 
शायद अनंत काल तक 
उकेरा जाता रहेगा 
आवेगों को अक्षरों में 
कुछ यू हीं
और फिर  कुछ ऐसे ही
बनती रहेगी,सजती रहेगी
सृजती रहेगी "कविता" 

"दो शब्द कि बस चाह है,दो शब्द से ही आह है,
दो शब्द कि व्युत्पति ही किसी काव्य का प्रवाह है"

कवि के लिए:
भावुक  होता है कवि  ह्रदय , जल्दी भावों में बह लेता,
सच कहता हूँ विश्वाश करो,इसलिए वो कविता गह लेता. 

(दरअसल कविता,कहानियां इत्यादि चीजें हमारे प्रोफेशन से  कुछ मेल नही खातीं . यही कारण है कि मुझसे ऐसे सवाल अक्सर किये जाते हैं कि:  कैसे लिखते हो? लिखने का मूड कैसे बनाते हो? या फिर मूड कैसे बन जाता है?. बस कुछ ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ते- ढूंढ़ते मैंने ये सब लिख डाला. क्यों कैसा लगा पढ़कर)
धन्यवाद :

1 comment:

दीपक कुमार मिश्र said...

अच्छा लगा आप जैसा ही कुछ हाल इधर भी है अब हम भी यहीं कहा करेंगे .......