Thursday, February 18, 2010

"लोग आते गये और कारवाँ बनता गया"

वेलेंटाइन डे ढेर सारी हलचल लिये इस बार फिर एक नए रंग में उपस्थित हुआ. हर बार की तरह इस बार भी पक्ष और विपक्ष के ढेर सारी बहसों का साझीदार रहा. इस बार कुछ नया करने का मन बना पक्ष-विपक्ष सबकी एक साथ बैठकर सुनने की योजना बना डाली. योजना तो सही थी लेकिनं इसके लिये बोलने वालों के साथ-साथ सुनने और उचित निष्कर्स निकलने वालों की भी जरुरत थी.
 कुछ नया करने से पहले मैंने अनुमति लेना श्रेयष्कर समझा जो कि मुझे आसानी से मिल गई. मुझे कुछ नया करता देख एक Class mate भी साथ हो लिया. सूचना  लिखी गई और आवश्यक स्थानों पर लगा दिया गया. मन में ढेर सारी बातें चल रही थी कि क्या होगा?,क्या बोलना होगा?,कैसे क्या करना होगा?. इसी उधेड़ बुन में पूर्व नियोजित समय भी आ गया.जब मै सुनिश्चित स्थान पे पहुंचा तो वंहा  किसी को न देख थोड़ा असमंजस में पड़ गया. थोड़ी देर के लिये तो नाराजगी भी हुई कि रूम में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यहाँ आकर क्यों नही बोल रहे. वैसे  मेरी नाराजगी बे वजह थी धीरे-धीरे रेलगाड़ी के डिब्बो की जो कि आम भारतीय सोच है  एक लम्बी कतार खड़ी हो गई.समय से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. विचारों का एक प्रवाह उमड पड़ा.लगभग डेढ़ घंटे चली इस वाद विवाद प्रतियोगिता को मैंने इन वाक्यों में समेटने का प्रयास किया है...........                                                                              
१)  इस दिवस का नामकरण किसी प्रेमी के नाम से नही बल्कि यूनान के किसी संत के नाम पे रखा गया जिन्होंने राजाज्ञा के विरुद्ध किसी प्रेमी युगल कि शादी करा दी.
२)  प्रेम विवाह कि प्रथा हमारे देश में गन्धर्व विवाह के नाम से प्राचीन कल से चली आ रही है.
३)  वर्तमान समय में हमारे समाज में फैली रुढ़िवादियों के पीछे हमारी प्राचीन संस्कृति नही बल्कि सल्तनत और मुगलकालीन व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं.
४)  समाज से किसी बुराई को दूर करने के लिये विचार क्रांति की आवश्यकता है न कि विरोध प्रदर्शन और रैलियों कि
५)  अपनी सीमओं और मान्यतावो को ध्यान में रखकर आप सबकुछ करने को स्वतंत्र हैं.
६)  हमारे निरंतर उन्नति  की तरफ  बढ़ते कदम पतंग की तरह हैं जिसे आगे बढ़ने के लिये अनुशासन रूपी धागे की आवश्यकता है.
७)  समाज को सभ्यता और संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाले लोग इसकी शुरुआत अपने घर से करें.
८)  वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समाज में इमोसन और प्रोफेसन के बीच उचित समन्वय ही हमारा सोसल मैनेजमेंट होगा.
९)  प्यार में पागलपन के लिये कोई स्थान नही है.
१०)  प्यार और मित्रता करने में जल्दबाजी नही करें और यदि करें तो अंत तक निभाएं.



अंततः वाद विवाद की समाप्ति मैंने इन शब्दों के साथ किया कि "करो चाहो जो लेकिन इस बात का ख्याल रख कि हमारी प्रगति के साथ कोई समझौता न हो"

 अंततः यह समस्त घटना क्रम इस पंक्ति को चरितार्थ कर गया कि
"मै अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर 
               लोग आते गये और कारवां बनता गया"


              













(सभी फोटोग्राफ्स मेरे रूम पार्टनर राकेश मीणा  के सौजन्य से) 


                                                   

Friday, February 5, 2010

"तेरी जय हो, विजय हो"

देर से ही सही समस्त भारत वासियों को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं.सफ़र के साथ कदमताल करते हुवे आज हम अपना ६१ वाँ गणतंत्र दिवस भी मना चुके. बीते ६१ वर्ष संघर्षों,परेशानियों के साथ-साथ उपलब्धियों के वर्ष भी रहे और हमारे दिलो दिमाग में ढेर सारी उम्मीदों का सृजन कर गये जिन्हें साकार करने के लिये हम निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं.....

                                             हर बार की तरह इस बार भी गणतंत्र  दिवस को कुछ काम करने के उद्देश्य से लेखनी ने दौड़ लगाई, लेकिन इस बार न जाने क्यों इसने कुछ दुस्साहसी  काम कर डाला. मै तो हर बार इससे अपनी ही कहलवाता रहा लेकिन इस बार इसने मेरी एक न सुनी और पडोसी पाकिस्तान के लिये कुछ ऐसी बात कह डाली.......................
नापाक इरादे रखते हो और    पाक   कहे   तुम   जाते हो
विचलित रहा है पथ खुद का और हमको भ्रमित बनाते हो
कहता यदि मै आतंकी तो उल्टी   ऊँगली    दिखलाते   हो
क्या समझा है तुमने हमको जो नित-नित हमको भरमाते हो
हम सहते हैं,चुप रहते हैं, ना कहते हैं आखिर कबतक ??????????

                    तुम यदि हद को पार किये विकल्प कहो तब क्या होंगे
                    सोचो तब  तेरा क्या होगा जब हम भी अपने पर होंगे
                    पाकी साकी को छोडो तुम है वक्त अभी भी जग जाओ
                     कर्म करो न कुछ ऐसा जो खुद ही खुद पे तुम शर्माओ

इतना ही नही इसने  तो कुछ ऐसा भी कह डाला............................
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वह दिवस जिसके लिये देनी पड़ी कुर्बानियां
वह दिवस जिसके लिये झेलनी पड़ी विरानियाँ
वह दिवस जिसके लिये किसी ने सपने संजोये रात-दिन
वह दिवस जहा से शुरू हुआ अपना सुदिन
    गुजर गया एक वर्ष आ गया है फिर वह दिवस
                 आज हम एकत्रित हैं जिस दिवस पर

भाषणबाजियों के लिये यही दिवस
कसमे   खाने  को    यही    दिवस
हुई है     छुट्टी     मिली   है मुक्ति
आराम फरमाने को है  यहीं दिवस
                                      पर सोचें थोड़ा उनके लिये भी..........
        सपने     के     लिये     जिनने     अपनों   को छोड़ दिया
        उजड़ा सुहाग सुनी हुई गोदें फिर भी आंसू को रोक लिया
        भ्रस्टाचारी    है   समाज    और   स्वेच्छाचारी   नेता  हैं
       षड्यंत्रकारी है पडोसी   अपना   अक्सर   घाव  जो देता है
घर बैठे हम सोचा करते, T.V पर देख रो लेते हैं
कट जाए चाहे जैसे जीवन थोड़े में खुश हो लेते हैं
                               वक्त है कम दो शब्द कहूँ जो हैं फौलादी
                                      आतंकवाद,अशिक्षा,बढती आबादी
                             रोक सकें तो रोकें नही तो निश्चित बर्बादी

आज चलते-चलते भारत के साथ-साथ समस्त भारत वाशियों के लिये यही कहना चाहूँगा कि "तेरी जय हो,विजय हो"